ऋग्वेद 1.16.1

आ त्वा वहन्तु हरयो वृषणं सोमपीतये। इन्द्र त्वा सूरचक्षसः॥1॥ पदपाठ — देवनागरी आ। त्वा॒। व॒ह॒न्तु॒। हर॑यः। वृष॑णम्। सोम॑ऽपीतये। इन्द्र॑। त्वा॒। सूर॑ऽचक्षसः॥ 1.16.1 PADAPAATH — ROMAN ā | tvā | vahantu | harayaḥ | vṛṣaṇam | soma-pītaye | indra | tvā | sūra-cakṣasaḥ देवता —        इन्द्र:;       छन्द —        गायत्री;       स्वर —        षड्जः;    ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे विद्वान् ! जिस (वृषणम्) वर्षा करनेहारे सूर्य्यलोक को (सोमपीतये) जिस व्यवहार में सोम अर्थात् ओषधियों के अर्क खिचे हुये पदार्थों का पान किया जाता है, उसके लिये (सूरचक्षसः) जिनका सूर्य्य में दर्शन होता है, (हरयः) हरण करनेहारे किरण प्राप्त करते हैं, (त्वा) उसको तू भी प्राप्त हो, जिसको सब कारीगर लोग प्राप्त होते हैं, उसको सब मनुष्य (आवहन्तु) प्राप्त हों। हे मनुष्यो ! जिसको हम लोग जानते है (त्वा) उसको...

भारतीय इतिहास की बिडम्बना

ईसाई मिशनरियों के जानने से बहुत पहले संसार ने वेदों के विषय में जान लिया था। यहां तक कि ईसा के जन्म से बहुत पहले मितन्नी और हित्ती राज्य जो वर्तमान तुर्की के अंतर्गत आते हैं, न केवल वैदिक जन को जानते थे बल्कि उनके देवतंत्र में गहन आस्था रखते थे। इतनी गहन कि दोनो राज्यों के बीच हुई संधि में इन्द्र, वरुण, मित्र और नासत्य देवताओं को साक्षी के रूप में रखा गया था। निसंदेह इस पुरातात्विक खोज ने जो ईसा से 1200 सालों से भी पहले एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) में वैदिक जन की उपस्थिति को दर्शाती थी यूरोपियन बाबुओं को अपनी मान्यताओं के पुनर्गठन के लिये बाध्य कर दिया। मानव जाति के लिये यह वह समय था...

वेदों को समझना

कल्पना करते हैं। कल्पना में सुख है। आपके पास दस हजार जीण शीर्ण पन्ने हैं। इतने जीर्ण शीर्ण कि थोड़ी सी भी असावधानी से फट सकते हैं या अनुपयोगी हो सकते हैं। प्रत्येक पन्ने पर कुछ पंक्तियां लिखी हुईं हैं। इन्हीं में से किसी अथवा किन्हीं पन्नो पर किसी बड़े खजाने के विषय में कुछ संकेत सूत्र भी हैं। आप एक बार में इनके अर्थ का निश्चय नहीं कर सकते क्योंकि उसमें अंकित जानकारी के साथ कुछ शर्ते हैं जो इन पन्नों से बाहर किसी मान लीजिये आपके घर से थोड़ी दूर स्थित किसी जंगल में कहीं अंकित कुछ संकेतों के मिलान से पूरी होती हैं। इन संकेतों के मिलान के बाद पन्नों पर लिखी जानकारी का अर्थ भी बदल...

इतिहास की संरचना

– संजीव कुमार किसी के लिये भी यह बिल्कुल बाध्यकारी नहीं है कि वह इतिहास पढ़े, लिखे या उस पर बात करे। तब भी लोग यह बाध्यता स्वयं पर आरोपित करते हैं। वे न केवल इतिहास पर बात करते हैं बल्कि उसके लिये झगड़ते भी हैं। हममें से बहुत से लोगों के लिये इतिहास अपनी भावनाओं और विचारों के लिये उचित लक्ष्य प्रतीत होता है। लोगों में इतिहास से सीखने की इच्छा चाहे जितनी कम हो, लेकिन उसके परिमार्जन और परिष्कार का प्रयास वे अपनी सारी शक्ति लगाकर कर लेना चाहते हैं। हम अनुमान लगा सकते हैं कि ऐसी कौन सी बात या बातें हैं जो लोगों को इतिहास की ओर मोड़ती हैं? दुर्भाग्यवश ऐसे अनुमानों की संख्या उतनी ही...

इतिहास और इतिहास की समझ

– संजीव कुमार इतिहास अतीत से किस तरह भिन्न है, हमारे लिये यह भी सोचने का उचित विषय है। संभव है दोनो अभिन्न हों क्योंकि दोनो ही बीत गये, विगत से संबधित हैं। लेकिन अतीत तो हर घटना, व्यक्ति या विचार का हो सकता है। सब तो इतिहास में नहीं बदलता। फिर कब अतीत इतिहास में बदल जाता है और कब वह मात्र बीता हुआ रह जाता है इसे कौन तय करता है? अतीत के जो टुकड़े इतिहास बन जाते हैं वे फिर उस अतीत से कैसे जुड़ते हैं, क्या यह भी हमें नहीं सोचना चाहिये? हम जिस इतिहास से परिचित हैं, उसमें हमें ये और ऐसे ही प्रश्न कभी मिलते क्यों नहीं हैं? यदि मिलते हैं तो वे हमारी...

शान्ति-स्तवन

महादेवी वर्मा शान्त गगन हो, शान्त धरा हो ! फैला दिशि-दिशि अन्तरिक्ष हो शान्त हमारा, शान्त हमारे हित हो सागर की जलधारा। औषधियों में क्षेम हमारे हित बिखरा हो ! शान्त गगन हो, शान्त धरा हो ! शममय हो भूकम्प शान्त उल्का-निपतन हो, शम, विदीर्ण धरती का उर भी भीति शमन हो, क्षेमकरी ही रहे धेनु लोहितक्षीरा हो। शान्त गगन हो, शान्त धरा हो ! उल्का – अभिहृत ग्रह शम हों अभियान दु:खकर, शम कृत्या छल कुहक हिंस्र आचरण क्षेमकर, संहारक विध्वंस हमें शम शान्ति भरा हो ! शान्त गगन हो शान्त धरा हो ! विवस्वान सम, मित्र वरुण अंतक भी शममय, पृथिवी के नभ के सारे उत्पात शान्तिमय, नभचर नक्षत्रों की गति में शम उतरा हो ! शान्त गगन...