इतिहास : सिद्धान्त और दर्शन

इतिहास से जुड़ी एक रोचक बात यह है कि विगत की यह यात्रा हम सदा अपने समय से आरंभ करते हैं। हम कभी वहां जाकर नहीं देखना चाहते हैं कि वहां क्या हुआ होगा? हम सदा वहां पहुंचकर बीते हुये में अपना अंश, अपना हिस्सा देखना, सूंघना चाहते हैं।
इतिहास और इतिहास की समझ – संजीव कुमार

किसी के लिये भी यह बिल्कुल बाध्यकारी नहीं है कि वह इतिहास पढ़े, लिखे या उस पर बात करे। तब भी लोग यह बाध्यता स्वयं पर आरोपित करते हैं। वे न केवल इतिहास पर बात करते हैं बल्कि उसके लिये झगड़ते भी हैं। हममें से बहुत से लोगों के लिये इतिहास अपनी भावनाओं और विचारों के लिये उचित लक्ष्य प्रतीत होता है।
इतिहास की संरचना – संजीव कुमार

ईसा से लगभग 1600 वर्ष पूर्व एशिया माइनर में हित्ती जन दिखाई देते हैं। ये वहां पहुंचनेवाले नये लोग थे। लौह अयस्क को पिघलाकर लोहा बनानेवाले ये पहले लोग थे। हित्ती और वैदिक सभ्यताओं में अत्यधिक साम्य है। दोनो सभ्यतायें कृषि आधारित हैं। महिलाओं की उन्नत सामाजिक भागीदारी और शिल्पियों की उपस्थिति भी दोनो सभ्यताओं में समान है।
इतिहास की बिडम्बना और भारत – संजीव कुमार

हमारे समय में यह एक झूठा विश्वास है कि जाति व्यवस्था अनंत समय से परिवारों को ठीक इसी क्रम में बनाये हुये है। जो आज स्वयं को ब्राह्‌मण कह लेते हैं, उनके पूर्वज सदा से ब्राह्‌मण ही थे। जो आज ब्राह्‌मण नहीं हैं उनके पुरखे कभी ब्राह्‌मण नहीं थे।
वेदों को समझना कल्पना की शक्ति से – संजीव कुमार