ऋग्वेद 1.27.4

इममू षु त्वमस्माकं सनिं गायत्रं नव्यांसम्। अग्ने देवेषु प्र वोचः॥4॥

पदपाठ — देवनागरी
इ॒मम्। ऊँ॒ इति॑। सु। त्वम्। अ॒स्माक॑म्। स॒निम्। गा॒य॒त्रम्। नव्यां॑सम्। अग्ने॑। दे॒वेषु॑। प्र। वो॒चः॒॥ 1.27.4

PADAPAATH — ROMAN
imam | oṃ iti | su | tvam | asmākam | sanim | gāyatram | navyāṃsam | agne | deveṣu | pra | vocaḥ

देवता —        अग्निः ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (अग्ने) अनन्त विद्यामय जगदीश्वर ! (त्वम्) सब विद्याओं का उपदेश करने और सब मंगलों के देनेवाले आप जैसे सृष्टि की आदि में (देवेषु) पुण्यात्मा अग्नि वायु आदित्य अंगिरा नामक मनुष्यों के आत्माओं में (नव्यांसम्) नवीन-नवीन बोध करानेवाला (गायत्रम्) गायत्री आदि छन्दों से युक्त (सुसनिम्) जिनमें सब प्राणी सुखों का सेवन करते हैं उन चारों वेदों का (प्रवोचः) उपदेश किया और अगले कल्प कल्पादि में फिर भी करोगे वैसे उसको (उ) विविध प्रकार से (अस्माकम्) हमारे आत्माओं में (सु) अच्छे प्रकार कीजिये॥4॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे जगदीश्वर! आपने जैसे ब्रह्मा आदि महर्षि धार्मिक विद्वानों के आत्माओं में वेद द्वारा सत्य बोध का प्रकाश कर उनको उत्तम सुख दिया वैसे ही हम लोगों के आत्माओं में बोध प्रकाशित कीजिये जिससे हम लोग विद्वान् होकर उत्तम-उत्तम धर्मकार्यों का सदा सेवन करते रहें॥4॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4. अग्नि! तुम हमारे इस हव्य की बात और इस अभिनव गायत्री छन्द में विरचित स्तोत्र की बात देवों से कहना।

R T H Griffith
4. O Agni, graciously announce this our oblation to the Gods, And this our newest song of praise. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Agni, graciously announce this our oblation to the gods, And this our newest song of praise. [4]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
4. Agni, announce to the gods this our offering, and these our newest hymns.
Navydmsam gayatram, most new Gayatri verses; showing the more recent composition of this Sukta.

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