ऋग्वेद 1.27.1

अश्वं न त्वा वारवन्तं वन्दध्या अग्निं नमोभिः। सम्राजन्तमध्वराणाम्॥1॥

पदपाठ — देवनागरी
अश्व॑म्। न। त्वा॒। वार॑ऽवन्तम्। व॒न्दध्यै॑। अ॒ग्निम्। नमो॑भिः। स॒म्ऽराज॑न्तम्। अ॒ध्व॒राणा॑म्॥ 1.27.1

PADAPAATH — ROMAN
aśvam | na | tvā | vāra-vantam | vandadhyai | agnim | namobhiḥ | sam-rājantam | adhvarāṇām

देवता —        अग्निः ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हम लोग (नमोभिः) नमस्कार स्तुति और अन्न आदि पदार्थों के साथ (वारवन्तम्) उत्तम केशवाले (अश्वम्) वेगवाले घोड़े के (न) समान। (अध्वराणाम्)राज्य के पालन अग्निहोत्र से लेकर शिल्पपर्य्यन्त यज्ञों में (सम्राजन्तम्) प्रकाशयुक्त (त्वा) आप विद्वान् को (वन्दध्यै) स्तुति करने को प्रवृत्त हुए भये सेवा करते हैं॥1॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। जैसे विद्वान् स्वविद्या के प्रकाश आदि गुणों से अपने राज्य में अविद्या अन्धकार को निवारण कर प्रकाशित होते हैं वैसे परमेश्वर सर्वज्ञपन आदि से प्रकाशमान है॥1॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. अग्निदेव? तुम पुच्छयुक्त घोड़े के समान हो, साथ ही यज्ञ के सम्राट् भी हो। हम स्तुति-द्वारा तुम्हारी वन्दना करने में प्रवृत्त हुए हैं।

R T H Griffith
1. WITH worship will I glorify thee, Agni, like a long-tailed steed, Imperial Lord of sacred rites. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
WITH worship will I glorify you, Agni, like a long-tailed steed, Imperial Lord of sacred rites. [1]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
1.(I proceed) to address you, the sovereign lord of sacrifice, with praises, (for you scatter our fores) like a horse (who brushes off flies with) his tail.
The comparison is merely, we praise you like a horse with a tail; the particulars are supplied by the Scholiast.

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