Category: ऋग्वेद:

ऋग्वेद 1.23.21

आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे मम। ज्योक्च सूर्यं दृशे॥21॥ पदपाठ — देवनागरी आपः॑। पृ॒णी॒त। भे॒ष॒जम्। वरू॑थम्। त॒न्वे॑। मम॑। ज्योक्। च॒। सूर्य॑म्। दृ॒शे॥ 1.23.21 PADAPAATH — ROMAN āpaḥ | pṛṇīta | bheṣajam | varūtham | tanve | mama | jyok | ca | sūryam | dṛśe देवता —        आपः ;       छन्द —        प्रतिष्ठागायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती मनुष्यों को योग्य है कि सब पदार्थों को व्याप्त होनेवाले प्राण (सूर्य्यम्) सूर्य्यलोक के (दृशे) दिखलाने वा (ज्योक्) बहुत काल जिवाने के लिये (मम) मेरे (तन्वे) शरीर के लिये (वरूथम्) श्रेष्ठ (भेषजम्) रोग नाश करनेवाले व्यवहार को (पृणीत) परिपूर्णता से प्रकट कर देते हैं उनका सेवन युक्ति ही से करना चाहिये॥21॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द...

ऋग्वेद 1.23.20

अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। अग्निं च विश्वशम्भुवमापश्च विश्वभेषजीः॥20॥ पदपाठ — देवनागरी अ॒प्ऽसु। मे॒। सोमः॑। अ॒ब्र॒वी॒त्। अ॒न्तः। विश्वा॑नि। भे॒ष॒जा। अ॒ग्निम्। च॒। वि॒श्वऽश॑म्भुवम्। आपः॑। च॒। वि॒श्वऽभे॑षजीः॥ 1.23.20 PADAPAATH — ROMAN ap-su | me | somaḥ | abravīt | antaḥ | viśvāni | bheṣajā | agnim | ca | viśva-śambhuvam | āpaḥ | ca | viśva-bheṣajīḥ देवता —        आपः ;       छन्द —        अनुष्टुप् ;       स्वर —        गान्धारः ;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे यह (सोमः) ओषधियों का राजा चन्द्रमा वा सोमलता (मे) मेरे लिये (अप्सु) जलों के (अन्तः) बीच में (विश्वानि) सब (भेषजा) औषधि (च) तथा (विश्वशम्भुवम्) सब जगत् के लिए सुख करनेवाले (अग्निम्) बिजुली को (अब्रवीत्) प्रसिद्ध करता है इसी प्रकार (विश्वभेषजीः) जिनके निमित्त से सब...

ऋग्वेद 1.23.19

अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तये। देवा भवत वाजिनः॥19॥ पदपाठ — देवनागरी अ॒प्ऽसु। अ॒न्तः। अ॒मृत॑म्। अ॒प्ऽसु। भे॒ष॒जम्। अ॒पाम्। उ॒त। प्रऽश॑स्तये। देवाः॑। भव॑त। वा॒जिनः॑॥ 1.23.19 PADAPAATH — ROMAN ap-su | antaḥ | amṛtam | ap-su | bheṣajam | apām | uta | pra-śastaye | devāḥ | bhavata | vājinaḥ देवता —        आपः ;       छन्द —        पुरउष्णिक् ;       स्वर —        ऋषभः ;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे (देवाः) विद्वानो ! तुम (प्रशस्तये) अपनी उत्तमता के लिये (अप्सु) जलों के (अन्तः) भीतर जो (अमृतम्) मार ड़ालनेवाले रोग का निवारण करनेवाला अमृतरूप रस (उत) तथा (अप्सु) जलों में (भेषजम्) औषध हैं उनको जानकर (अपाम्) उन जलों की क्रिया कुशलता से (वाजिनः) उत्तम श्रेष्ठ ज्ञानवाले (भवत) हो जाओ॥19॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती...

ऋग्वेद 1.23.18

अपो देवीरुप ह्वये यत्र गावः पिबन्ति नः। सिन्धुभ्यः कर्त्वं हविः॥18॥ पदपाठ — देवनागरी अ॒पः। दे॒वीः। उप॑। ह्व॒ये॒। यत्र॑। गावः॑। पिब॑न्ति। नः॒। सिन्धु॑ऽभ्यः। कर्त्व॑म्। ह॒विः॥ 1.23.18 PADAPAATH — ROMAN apaḥ | devīḥ | upa | hvaye | yatra | gāvaḥ | pibanti | naḥ | sindhu-bhyaḥ | kartvam | haviḥ देवता —        आपः ;       छन्द —        निचृद्गायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती (यत्र) जिस व्यवहार में (गावः) सूर्य की किरणें (सिन्धुभ्यः) समुद्र और नदियों से (देवीः) दिव्य गुणों को प्राप्त करनेवाले (अपः) जलों को (पिबन्ति) पीती हैं उन जलों को (नः) हम लोगों के (हविः) हवन करने योग्य पदार्थों के (कर्त्त्वम्) उत्पन्न करने के लिये मैं (उपह्वये) अच्छे प्रकार स्वीकार करता हूँ॥18॥ भावार्थ...

ऋग्वेद 1.23.17

अमूर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह। ता नो हिन्वन्त्वध्वरम्॥17॥ पदपाठ — देवनागरी अ॒मूः। याः। उप॑। सूर्ये॑। याभिः॑। वा॒। सूर्यः॑। स॒ह। ताः। नः॒। हि॒न्व॒न्तु॒। अ॒ध्व॒रम्॥ 1.23.17 PADAPAATH — ROMAN amūḥ | yāḥ | upa | sūrye | yābhiḥ | vā | sūryaḥ | saha | tāḥ | naḥ | hinvantu | adhvaram देवता —        आपः ;       छन्द —        गायत्री;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती (याः) जो (अमूः) जल दृष्टिगोचर नहीं होते (सूर्य्ये) सूर्य वा इसके प्रकाश के मध्य में वर्त्तमान हैं (वा) अथवा (याभिः) जिन जलों के (सह) साथ सूर्य लोक वर्त्तमान है (ताः) वे (नः) हमारे (अध्वरम्) हिंसारहित सुखरूप यज्ञ को (उपहिन्वन्तु) प्रत्यक्ष सिद्ध करते हैं॥17॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जो जल...

ऋग्वेद 1.23.16

अम्बयो यन्त्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्। पृञ्चतीर्मधुना पयः॥16॥ पदपाठ — देवनागरी अ॒म्बयः॑। य॒न्ति॒। अध्व॑ऽभिः। जा॒मयः॑। अ॒ध्व॒रि॒ऽय॒ताम्। पृ॒ञ्च॒तीः। मधु॑ना। पयः॑॥ 1.23.16 PADAPAATH — ROMAN ambayaḥ | yanti | adhva-bhiḥ | jāmayaḥ | adhvari-yatām | pṛñcatīḥ | madhunā | payaḥ देवता —        आपः ;       छन्द —        निचृद्गायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे भाइयों को (जामयः) भाई लोग अनुकूल आचरण सुख सम्पादन करते हैं वैसे ये (अम्बयः) रक्षा के करनेवाले जल (अध्वरीयताम्) जो कि हम लोग अपने आपको यज्ञ करने की इच्छा करते हैं उनको (मधुना) मधुरगुण के साथ (पयः) सुखकारक रस को (अध्वभिः) मार्गों से (पृञ्चतीः) पहुँचाने वाले (यन्ति) प्राप्त होते हैं॥16॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती इस मन्त्र में लुप्तोपमालंकार है। जैसे बन्धु जन अपने...