ऋग्वेदः 1.10.10
विद्मा हि त्वा वृषन्तमं वाजेषु हवनश्रुतम्। वृषन्तमस्य हूमह ऊतिं सहस्रसातमाम्॥10॥ पदपाठ — देवनागरी वि॒द्म। हि। त्वा॒। वृष॑न्ऽतमम्। वाजे॑षु। ह॒व॒न॒ऽश्रुत॑म्। वृष॑न्ऽतमस्य। हू॒म॒हे॒। ऊ॒तिम्। स॒ह॒स्र॒ऽसात॑माम्॥ 1.10.10 PADAPAATH — ROMAN vidma | hi | tvā | vṛṣan-tamam | vājeṣu | havana-śrutam | vṛṣan-tamasya | hūmahe | ūtim | sahasra-sātamām देवता — इन्द्र:; छन्द — अनुष्टुप् ; स्वर — गान्धारः ; ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे परमेश्वर! हमलोग (वाजेषु) संग्रामों में, (हवनश्रुतं) प्रार्थना को सुनने योग्य और, (वृषन्तमम्) अभीष्टकार्य्यों के अच्छी प्रकार देने और जाननेवाले, (त्वा) आपको, (विद्म) जानते हैं, (हि) जिस कारण हमलोग, (वृषन्तमस्य) अतिशय करके श्रेष्ठ कामों को मेघ के समान वर्षानेवाले, (तव) आपकी, (सहस्रसातमां) अच्छी प्रकार अनेक सुखों को देनेवाली जो, (ऊतिं) रक्षा प्राप्ति और...