ऋग्वेद 1.16.2
इमा धाना घृतस्नुवो हरी इहोप वक्षतः।इन्द्रं सुखतमे रथे॥2॥ पदपाठ — देवनागरी इ॒माः। धा॒नाः। घृ॒त॒ऽस्नुवः॑। हरी॒ इति॑। इ॒ह। उप॑। व॒क्ष॒तः॒। इन्द्र॑म्। सु॒खऽत॑मे। रथे॑॥ 1.16.2 PADAPAATH — ROMAN imāḥ | dhānāḥ | ghṛta-snuvaḥ | harī iti | iha | upa | vakṣataḥ | indram | sukha-tame | rathe देवता — इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती (हरी) जो पदार्थों को हरनेवाले सूर्य्य के कृष्ण वा शुक्ल पक्ष हैं, वे (इह) इस लोक में (इमाः) इन (धानाः) दीप्तियों को तथा (इन्द्रम्) सूर्य्यलोक को (सुखतमे) जो बहुत अच्छी प्रकार सुखहेतु (रथे) रमण करने योग्य विमान आदि रथों के (उप) समीप (वक्षतः) प्राप्त करते हैं॥2॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वतीजो इस संसार में रात्रि और दिन...