ऋग्वेद 1.24.2
अग्नेर्वयं प्रथमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम। स नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥2॥ पदपाठ — देवनागरी अ॒ग्नेः। व॒यम्। प्रथ॒मस्य॑। अ॒मृता॑नाम्। मना॑महे। चारु॑। दे॒वस्य॑। नाम॑। सः। नः॑। म॒ह्यै। अदि॑तये। पुनः॑। दा॒त्। पि॒तर॑म्। च॒। दृ॒शेय॑म्। मा॒तर॑म्। च॒॥ 1.24.2 PADAPAATH — ROMAN agneḥ | vayam | prathamasya | amṛtānām | manāmahe | cāru | devasya | nāma | saḥ | naḥ | mahyai | aditaye | punaḥ | dāt | pitaram | ca | dṛśeyam | mātaram | ca देवता — अग्निः ; छन्द — त्रिष्टुप् ; स्वर — धैवतः; ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हम लोग जिस (अग्ने) ज्ञानस्वरूप (अमृतानाम्) विनाश धर्म रहित पदार्थ वा मोक्ष प्राप्त जीवों में (प्रथमस्य) अनादि विस्तृत अद्वितीय स्वरूप (देवस्य) सब जगत् के प्रकाश करने...