ऋग्वेद 1.24.8
उरुं हि राजा वरुणश्चकार सूर्याय पन्थामन्वेतवा उ। अपदे पादा प्रतिधातवेऽकरुतापवक्ता हृदयाविधश्चित्॥8॥ पदपाठ — देवनागरी उ॒रुम्। हि। राजा॑। वरु॑णः। च॒कार॑। सूर्या॑य। पन्था॑म्। अनु॑ऽए॒त॒वै। ऊँ॒ इति॑। अ॒पदे॑। पादा॑। प्रति॑ऽधातवे। अ॒कः॒। उ॒त। अ॒प॒ऽव॒क्ता। हृ॒द॒य॒ऽविधः॑। चित्॥ 1.24.8 PADAPAATH — ROMAN urum | hi | rājā | varuṇaḥ | cakāra | sūryāya | panthām | anu-etavai | oṃ iti | apade | pādā | prati-dhātave | akaḥ | uta | apa-vaktā | hṛdaya-vidhaḥ | cit देवता — वरुणः ; छन्द — निचृत्त्रिष्टुप् ; स्वर — धैवतः; ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती (चित्) जैसे (अपवक्ता) मिथ्यावादी छली दुष्ट स्वभावयुक्त पराये पदार्थ (हृदयाविधः)अन्याय से परपीड़ा करनेहारे शत्रु को दृढ़ बन्धनों से वश में रखते हैं वैसे जो(वरुणः) (राजा) अतिश्रेष्ठ और प्रकाशमान परमेश्वर वा श्रेष्ठता...