ऋग्वेद 1.25.11
अतो विश्वान्यद्भुता चिकित्वाँ अभि पश्यति। कृतानि या च कर्त्वा॥11॥ पदपाठ — देवनागरी अतः॑। विश्वा॑नि। अद्भु॑ता। चि॒कि॒त्वान्। अ॒भि। प॒श्य॒ति॒। कृ॒तानि॑। या। च॒। कर्त्वा॑॥ 1.25.11 PADAPAATH — ROMAN ataḥ | viśvāni | adbhutā | cikitvān | abhi | paśyati | kṛtāni | yā | ca | kartvā देवता — वरुणः; छन्द — विराड्गायत्री ; स्वर — षड्जः; ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जिस कारण जो (चिकित्वान्) सबको चेतानेवाला धार्मिक सकल विद्याओं कोजानने न्याय करनेवाला मनुष्य (या) जो (विश्वानि) सब (कृतानि) अपने कियेहुए (च) और (कर्त्त्वा) जो आगे करने योग्य कर्मों और (अद्भुतानि)आश्चर्य्यरूप वस्तुओं को (अभिपश्यति) सब प्रकार से देखता है। (अतः) इसीकारण वह न्यायाधीश होने को समर्थ होता है॥11॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जिस प्रकार ईश्वर सब जगह व्याप्त और सर्व शक्तिमान् होने से सृष्टि रचनादिरूपी कर्म और जीवों के तीनों कालों के कर्मों को जानकर इनको उन-उन कर्मोंके अनुसार फल देने को योग्य है। इसी प्रकार जो विद्वान् मनुष्य पहिले होगये उनके कर्मों और आगे अनुष्ठान करने योग्य कर्मों के करने में युक्त होताहै वही सबको देखता हुआ सबके उपकार करनेवाले उत्तम से उत्तम कर्मों कोकर सबका न्याय करने को योग्य होता है॥11॥ रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर) 11. ज्ञानी मनुष्य वरुण की कृपा से वर्तमान और भविष्यत्-सारी अद्भुत घटनाओं को देखते हैं। Ralph Thomas Hotchkin Griffith 11. From thence percerving he beholds all wondrous things, both what hath been, And what hereafter will be done. Translation of Griffith Re-edited ...