ऋग्वेदः 1.4.2
उप नः सवना गहि सोमस्य सोमपाः पिब । गोदा इद्रेवतो मदः ॥2॥ पदपाठ — देवनागरीउप॑ । नः॒ । सव॑ना । आ । ग॒हि॒ । सोम॑स्य । सो॒म॒ऽपाः॒ । पि॒ब॒ । गो॒ऽदाः । इत् । रे॒वतः॑ । मदः॑ ॥ 1.4.2 PADAPAATH — ROMANupa | naḥ | savanā | ā | gahi | somasya | soma-pāḥ | piba | go–dāḥ | it | revataḥ | madaḥ देवता — इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः; ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती(सोमपाः) जो सब पदार्थों का रक्षक और (गोदाः) नेत्र के व्यवहार को देनेवाला सूर्य्य अपने प्रकाश से (सोमस्य) उत्पन्न हुए कार्य्य रूप जगत में (सवना) ऐश्वर्ययुक्त पदार्थों के प्रकाश करने को अपनी किरण द्वारा सन्मुख (आगहि) आता है...