ऋग्वेदः 1.7.2
इन्द्र इद्धर्योः सचा सम्मिश्ल आ वचोयुजा। इन्द्रो वज्री हिरण्ययः॥2॥ पदपाठ — देवनागरीइन्द्रः॑। इत्। हर्योः॑। सचा॑। सम्ऽमि॑श्लः। आ। व॒चःऽयुजा॑। इन्द्रः॑। व॒ज्री। हि॒र॒ण्ययः॑॥ 1.7.2 PADAPAATH — ROMANindraḥ | it | haryoḥ | sacā | sam-miślaḥ | ā | vacaḥ-yujā | indraḥ | vajrī | hiraṇyayaḥ देवता — इन्द्र:; छन्द — निचृद्गायत्री ; स्वर — षड्जः; ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वतीजिस प्रकार यह (संमिश्लः) पदार्थों में मिलने तथा (इन्द्रः) ऐश्वर्यका हेतु स्पर्श गुणवाला वायु अपने (सचा) सबमें मिलनेवाले और (वचोयुजा) वाणी के व्यवहार को वर्त्तानेवाले (हर्य्योः) हरने और प्राप्त करनेवाले गुणों को (आ) सब पदार्थों में युक्त करता है वैसे ही (वज्री) संवत्सर वा तापवाला (हिरण्ययः) प्रकाशस्वरूप (इन्द्रः) सूर्य्य भी अपने हरण और आहरण गुणों को सब पदार्थों...