ऋग्वेदः 1.13.1
सुसमिद्धो न आ वह देवाँ अग्ने हविष्मते। होतः पावक यक्षि च॥1॥ पदपाठ — देवनागरी सुऽस॑मिद्धः। नः॒। आ। व॒ह॒। दे॒वान्। अ॒ग्ने॒। ह॒विष्म॑ते। होत॒रिति॑। पा॒व॒क॒। यक्षि॑। च॒॥ 1.13.1 PADAPAATH — ROMAN su-samiddhaḥ | naḥ | ā | vaha | devān | agne | haviṣmate | hotariti | pāvaka | yakṣi | ca देवता — इध्मः समिध्दो वाऽग्निः ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे (होतः) पदार्थों को देने और (पावक) शुद्ध करनेवाले (अग्ने) विश्व के ईश्वर ! जिस हेतु से (सुसमिद्धः) अच्छी प्रकार प्रकाशवान् आप कृपा करके (नः) हमारे (च) तथा (हविष्मते) जिसके बहुत हवि अर्थात् पदार्थ विद्यमान हैं उस विद्वान् के लिये (देवान्) दिव्यपदार्थों को (आवह) अच्छी प्रकार प्राप्त करते हैं, इससे मैं आपका निरन्तर (यक्षि)...