ऋग्वेद 1.20.1
अयं देवाय जन्मने स्तोमो विप्रेभिरासया। अकारि रत्नधातमः॥1॥ पदपाठ — देवनागरी अ॒यम्। दे॒वाय॑। जन्म॑ने। स्तोमः॑। विप्रे॑भिः। आ॒स॒या। अका॑रि। र॒त्न॒ऽधात॑मः॥ 1.20.1 PADAPAATH — ROMAN ayam | devāya | janmane | stomaḥ | viprebhiḥ | āsayā | akāri | ratna-dhātamaḥ देवता — ऋभवः ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती (विप्रेभिः) ॠभु अर्थात् बुद्धिमान् लोग (आसया) अपने मुख से (देवाय) अच्छे-2 गुणों के भोगों से युक्त (जन्मने) दूसरे जन्म के लिये (रत्नधातमः) रमणीय अर्थात् अतिसुन्दरता से सुखों को दिलाने वाली जैसी (अयम्) विद्या के विचार से प्रत्यक्ष की हुई परमेश्वर की (स्तोमः) स्तुति है, वह वैसे जन्म के भोग करनेवाली होती है॥1॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती इस मन्त्र में पुनर्जन्म का विधान जानना चाहिये। मनुष्य जैसे कर्म किया करते हैं, वैसे...