ऋग्वेद 1.23.8
इन्द्रज्येष्ठा मरुद्गणा देवासः पूषरातयः। विश्वे मम श्रुता हवम्॥8॥ पदपाठ — देवनागरी इन्द्र॑ऽज्येष्ठाः। मरु॑त्ऽगणाः। देवा॑सः। पूष॑ऽरातयः। विश्वे॑। मम॑। श्रु॒त॒। हव॑म्॥ 1.23.8 PADAPAATH — ROMAN indra-jyeṣṭhāḥ | marut-gaṇāḥ | devāsaḥ | pūṣa-rātayaḥ | viśve | mama | śruta | havam देवता — इन्द्रोमरुत्वान् ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जो (पूषरातयः) सूर्य्य के सम्बन्ध से पदार्थों को देने (इन्द्रज्येष्ठाः) जिनके बीच में सूर्य्य बड़ा प्रशंसनीय हो रहा है और (देवासः) दिव्य गुणवाले (विश्वे) सब (मरुद्गणाः) पवनों के समूह (मम) मेरे (हवम्) कार्य्य करने योग्य शब्द व्यवहार को (श्रुत) सुनाते हैं वे ही आप लोगों को भी॥8॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती कोई भी मनुष्य जिन पवनों के बिना कहना, सुनना और पुष्ट...