ऋग्वेद 1.27.6
विभक्तासि चित्रभानो सिन्धोरूर्मा उपाक आ। सद्यो दाशुषे क्षरसि॥6॥ पदपाठ — देवनागरीवि॒ऽभ॒क्ता। अ॒सि॒। चि॒त्र॒भा॒नो॒ इति॑ चित्रऽभानो। सिन्धोः॑। ऊ॒र्मौ। उ॒पा॒के। आ। स॒द्यः। दा॒शुषे॑। क्ष॒र॒सि॒॥ 1.27.6 PADAPAATH — ROMANvi-bhaktā | asi | citrabhāno iticitra-bhāno | sindhoḥ | ūrmau | upāke | ā | sadyaḥ | dāśuṣe | kṣarasi देवता — अग्निः ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः; ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वतीजैसे हे (चित्रभानो) विविध विद्यायुक्त विद्वान् मनुष्य! आप (सिन्धोः) समुद्र की (ऊर्मौ) तरंगों में जल के बिन्दु कणों के समान सब पदार्थ विद्या के (विभक्ता) अलग-अलग करनेवाले (असि) हैं और (दाशुषे) विद्या का ग्रहण वा अनुष्ठान करनेवाले मनुष्य के लिये (उपाके) समीप सत्य बोध उपदेश को (सद्यः) शीघ्र (आक्षरसि) अच्छे प्रकार वर्षाते हो वैसे भाग्यशाली विद्वान् आप...