ऋग्वेदः 1.1.9
स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये ॥9॥ पदपाठ — देवनागरी सः । नः॒ । पि॒ताऽइ॑व । सू॒नवे॑ । अग्ने॑ । सु॒ऽउ॒पा॒य॒नः । भ॒व॒ । सच॑स्व । नः॒ । स्व॒स्तये॑ ॥ 1.1.9 PADAPAATH — ROMAN saḥ | naḥ | pitāiva | sūnave | agne | su-upāyanaḥ | bhava | sacasva | naḥ | svastaye देवता — अग्निः ; छन्द — विराड्गायत्री ; स्वर — षड्जः; ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे (सः) उक्तगुणयुक्त (अग्ने) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (पितेव) जैसे पिता (सूनवे) अपने पुत्र के लिये उत्तम ज्ञान का देनेवाला होता है, वैसे ही आप (नः) हम लोगों के लिये (सूपायनः) शोभन ज्ञान जो कि सब सुखों का साधक और उत्तम-उत्तम पदार्थों को...