ऋग्वेदः 1.5.5
सुतपाव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये । सोमासो दध्याशिरः ॥5॥ पदपाठ — देवनागरीसु॒त॒ऽपाव्ने॑ । सु॒ताः । इ॒मे । शुच॑यः । य॒न्ति॒ । वी॒तये॑ । सोमा॑सः । दधि॑ऽआशिरः ॥ 1.5.5 PADAPAATH — ROMANsuta-pāvne | sutāḥ | ime | śucayaḥ | yanti | vītaye | somāsaḥ | dadhi-āśiraḥ देवता — इन्द्र:; छन्द — निचृद्गायत्री ; स्वर — षड्जः; ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वतीपरमेश्वर ने वा वायुसूर्य्यसे जिस कारण (सुतपाव्ने) अपने उत्पन्न किये हुए पदार्थों की रक्षा करनेवाले जीवके तथा (वीतये) ज्ञान वा भोगके लिए (दध्याशिरः) जो धारण करनेवाले उत्पन्न होते हैं तथा (शुचयः) जो पवित्र (सोमासः) जिनसे अच्छे व्यवहार होते हैं वे सब पदार्थ जिसने उत्पादन करके पवित्र किये हैं इसीसे सब प्राणि लोग इनको प्राप्त होते...