ऋग्वेदः 1.7.9
य एकश्चर्षणीनां वसूनामिरज्यति। इन्द्रः पञ्च क्षितीनाम्॥9॥ पदपाठ — देवनागरी यः। एकः॑। च॒र्ष॒णी॒नाम्। वसू॑नाम्। इ॒र॒ज्यति॑। इन्द्रः॑। पञ्च॑। क्षि॒ती॒नाम्॥ 1.7.9 PADAPAATH — ROMAN yaḥ | ekaḥ | carṣaṇīnām | vasūnām | irajyati | indraḥ | pañca | kṣitīnām देवता — इन्द्र:; छन्द — पादनिचृद्गायत्री ; स्वर — षड्जः; ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती (यः) जो (इन्द्रः) दुष्ट शत्रुओं का विनाश करनेवाला परमेश्वर (चर्षणीनां) मनुष्य (वसूनां) अग्नि आदि आठ निवास के स्थान और (पंच) जो नीच, मध्यम, उत्तम, उत्तमतर और उत्तमतम गुणोंवाले पांच प्रकार के (क्षितीनां) पृथिवी लोक हैं उन्ही के बीच (इरज्यति) ऐश्वर्य्य के देने और सबके सेवा करने योग्य परमेश्वर है वह (एकः) अद्वितीय और सबका सहाय करनेवाला है॥9॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जो सबका...