ऋग्वेद 1.25.12
स नो विश्वाहा सुक्रतुरादित्यः सुपथा करत्। प्र ण आयूंषि तारिषत्॥12॥ पदपाठ — देवनागरी सः। नः॒। वि॒श्वाहा॑। सु॒ऽक्रतुः॑। आ॒दि॒त्यः। सु॒ऽपथा॑। क॒र॒त्। प्र। नः॒। आयूं॑षि। ता॒रि॒ष॒त्॥ 1.25.12 PADAPAATH — ROMAN saḥ | naḥ | viśvāhā | su-kratuḥ | ādityaḥ | su-pathā | karat | pra | naḥ | āyūṃṣi | tāriṣat देवता — वरुणः; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः; ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे (आदित्यः) अविनाशी परमेश्वर प्राण वा सूर्य (विश्वाहा) सब दिन (नः) हम लोगों को(सुपथा) अच्छे मार्ग में चलाने और (नः) हमारी (आयूंषि) उमर (प्रतारिषत्) सुख केसाथ परिपूर्ण (करत्) करते हैं वैसे ही (सुक्रतुः) श्रेष्ठकर्म और उत्तम-उत्तम जिससे ज्ञान होवह (आदित्यः) विद्या धर्म प्रकाशित न्यायकारी मनुष्य (विश्वाहा) सब दिनों में (नः) हमलोगों को (सुपथा) अच्छे मार्ग में (करत्) करें और (नः) हम लोगों की (आयूंषि) उमरोंको (प्रतारिषत्) सुखसे परिपूर्ण करे॥12॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती इस मन्त्र में श्लेष और उपमालंकार हैं। जो मनुष्य ब्रह्मचर्य और जितेन्द्रियता आदि सेआयु बढ़ाकर धर्म मार्ग में विचरते हैं उन्हीं को जगदीश्वर अनुगृहीतकर आनन्द युक्तकरता है। जैसे प्राण और सूर्य्य अपने बल और तेज से ऊंचे नीचे स्थानों को प्रकाशितकर प्राणियों को सुख के मार्ग से युक्त करके उचित समय पर दिनरात आदि सबकालविभागों को अच्छे प्रकार सिद्ध करते हैं वैसे ही अपने आत्मा शरीर और सेना केबल में न्यायाधीश मनुष्य धर्म युक्त छोटे मध्यम और बड़े कर्मों के प्रचार से अधर्म युक्तको छुड़ा उत्तम और नीच मनुष्यों का विभाग सदा किया करे॥12॥ रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर) 12. वही सत्कर्मपरायण और अदिति-पुत्र वरुण हमें सदा सुपथगामी बनावें, हमारी आयु बढ़ावें। Ralph Thomas Hotchkin Griffith 12 May that Aditya, very -wise, make fair paths for us all our days: May lie prolong our lives for us. ...