ऋग्वेदः 1.15.2
मरुतः पिबत ऋतुना पोत्राद्यज्ञं पुनीतन। यूयं हि ष्ठा सुदानवः॥2॥ पदपाठ — देवनागरी मरु॑तः। पिब॑त। ऋ॒तुना॑। पो॒त्रात्। य॒ज्ञम्। पू॒नी॒त॒न॒। यू॒यम्। हि। स्थ। सु॒ऽदा॒न॒वः॒॥ 1.15.2 PADAPAATH — ROMAN marutaḥ | pibata | ṛtunā | potrāt | yajñam | pūnītana | yūyam | hi | stha | su-dānavaḥ देवता — मरूतः; छन्द — भुरिग्गायत्री ; स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती ये (मरुतः) पवन (ॠतुना) वसन्त आदि ॠतुओं के साथ सब रसों को (पिबत) पीते हैं, वे ही (पोत्रात्) अपने पवित्रकारक गुण से (यज्ञम्) उक्त तीन प्रकार के यज्ञ को (पुनीतन) पवित्र करते हैं, तथा (हि) जिस कारण (यूयम्) वे (सुदानवः) पदार्थों के अच्छी प्रकार दिलानेवाले (स्थ) हैं, इससे वे युक्ति के साथ क्रियाओं में युक्त हुएकार्य्यों को सिद्ध करते...