Author: Sanjeev Kumar

ऋग्वेदः 1.15.2

मरुतः पिबत ऋतुना पोत्राद्यज्ञं पुनीतन। यूयं हि ष्ठा सुदानवः॥2॥ पदपाठ — देवनागरी मरु॑तः। पिब॑त। ऋ॒तुना॑। पो॒त्रात्। य॒ज्ञम्। पू॒नी॒त॒न॒। यू॒यम्। हि। स्थ। सु॒ऽदा॒न॒वः॒॥ 1.15.2 PADAPAATH — ROMAN marutaḥ | pibata | ṛtunā | potrāt | yajñam | pūnītana | yūyam | hi | stha | su-dānavaḥ देवता —        मरूतः;       छन्द —        भुरिग्गायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती ये (मरुतः) पवन (ॠतुना) वसन्त आदि ॠतुओं के साथ सब रसों को (पिबत) पीते हैं, वे ही (पोत्रात्) अपने पवित्रकारक गुण से (यज्ञम्) उक्त तीन प्रकार के यज्ञ को (पुनीतन) पवित्र करते हैं, तथा (हि) जिस कारण (यूयम्) वे (सुदानवः) पदार्थों के अच्छी प्रकार दिलानेवाले (स्थ) हैं, इससे वे युक्ति के साथ क्रियाओं में युक्त हुएकार्य्यों को सिद्ध करते...

ऋग्वेदः 1.15.1

इन्द्र सोमं पिब ऋतुना त्वा विशन्त्विन्दवः। मत्सरासस्तदोकसः॥1॥ पदपाठ — देवनागरी इन्द्र॑। सोम॑म्। पिब॑। ऋ॒तुना॑। आ। त्वा॒। वि॒श॒न्तु॒। इन्द॑वः। म॒त्स॒रासः॒। तत्ऽओ॑कसः॥ 1.15.1 PADAPAATH — ROMAN indra | somam | piba | ṛtunā | ā | tvā | viśantu | indavaḥ | matsarāsaḥ | tat-okasaḥ देवता —        इन्द्र:;       छन्द —        निचृद्गायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे मनुष्य ! यह (इन्द्र) समय का विभाग करनेवाला सूर्य्य (ॠतुना) वसन्त आदि ॠतुओं के साथ (सोमम्) ओषधि आदि पदार्थों के रस को (पिब) पीता है,और ये (तदोकसः) जिनके अन्तरिक्ष वायु आदि निवास के स्थान तथा (मत्सरासः) आनन्द के उत्पन्न करने वाले हैं, वे (इन्दवः) जलों के रस (ॠतुना) वसन्त आदि ॠतुओं के साथ (त्वा) इस प्राणी वा अप्राणी को क्षण-2...

ऋग्वेदः 1.14.12

युक्ष्वा ह्यरुषी रथे हरितो देव रोहितः। ताभिर्देवाँ इहा वह॥12॥ पदपाठ — देवनागरी यु॒क्ष्व। हि। अरु॑षीः। रथे॑। ह॒रितः॑। दे॒व॒। रो॒हितः॑। ताभिः॑। दे॒वान्। इ॒ह। आ। व॒ह॒॥ 1.14.12 PADAPAATH — ROMAN yukṣva | hi | aruṣīḥ | rathe | haritaḥ | deva | rohitaḥ | tābhiḥ | devān | iha | ā | vaha देवता —        विश्वेदेवा:;       छन्द —        निचृद्गायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे (देव) विद्वान मनुष्य ! तू (रथे) पृथिवी समुद्र और अन्तरिक्ष में जाने-आने के लिये विमान आदि रथ में (रोहितः) नीची ऊँची जगह उतारने चढ़ाने (हरितः) पदार्थों को हरने (अरुषीः) लालरंग युक्त तथा गमन करानेवाली ज्वाला अर्थात् लपटों को (युक्ष्व) युक्त कर और (ताभिः) इनसे (इह) इस संसार में (देवान्)...

ऋग्वेदः 1.14.11

त्वं होता मनुर्हितोऽग्ने यज्ञेषु सीदसि। सेमं नो अध्वरं यज॥11॥ पदपाठ — देवनागरी त्वम्। होता॑। मनुः॑ऽहितः। अग्ने॑। य॒ज्ञेषु॑। सी॒द॒सि॒। सः। इ॒मम्। नः॒। अ॒ध्व॒रम्। य॒ज॒॥ 1.14.11 PADAPAATH — ROMAN tvam | hotā | manuḥ-hitaḥ | agne | yajñeṣu | sīdasi | saḥ | imam | naḥ | adhvaram | yaja देवता —        विश्वेदेवा:;       छन्द —        विराड्गायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे (अग्ने) जो आप अतिशय करके पूजन करने योग्य जगदीश्वर ! (मनुर्हितः) मनुष्य आदि पदार्थों के धारण करने और (होता) सब पदार्थों के देनेवाले हैं,(त्वम्) जो (यज्ञेषु) क्रियाकाण्ड को आदि से लेकर ज्ञान होने पर्य्यन्त ग्रहण करने योग्य यज्ञों में (सीदसि) स्थित हो रहे हो, (सः) सो आप (नः) हमारे (इमम्) इस (अध्वरम्)...

ऋग्वेदः 1.14.10

विश्वेभिः सोम्यं मध्वग्न इन्द्रेण वायुना। पिबा मित्रस्य धामभिः॥10॥ पदपाठ — देवनागरी विश्वे॑भिः। सो॒म्यम्। मधु॑। अग्ने॑। इन्द्रे॑ण। वा॒युना॑। पिब॑। मि॒त्रस्य॑। धाम॑ऽभिः॥ 1.14.10 PADAPAATH — ROMAN viśvebhiḥ | somyam | madhu | agne | indreṇa | vāyunā | piba | mitrasya | dhāma-bhiḥ देवता —        विश्वेदेवा:;       छन्द —        विराड्गायत्री ;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती (अग्ने) यह अग्नि (इन्द्रेण) परम ऐश्वर्य्य करानेवाले (वायुना) स्पर्श वा गमन करनेहारे पवन के और (मित्रस्य) सब में रहने तथा सबके प्राणरूप होकर वर्त्तनेवाले वायु के साथ (विश्वेभिः) सब (धामभिः) स्थानों से (सोम्यम्) सोम सम्पादन के योग्य (मधु) मधुर आदि गुणयुक्त पदार्थ को (पिब) ग्रहण करता है॥10॥ भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती यह विद्युत् रूप अग्नि ब्रह्माण्ड में रहनेवाले पवन...

ऋग्वेदः 1.14.9

आकीं सूर्यस्य रोचनाद्विश्वान्देवाँ उषर्बुधः। विप्रो होतेह वक्षति॥9॥ पदपाठ — देवनागरी आकी॑म्। सूर्य॑स्य। रो॒च॒नात्। विश्वा॑न्। दे॒वान्। उ॒षः॒ऽबुधः॑। विप्रः॑। होता॑। इ॒ह। व॒क्ष॒ति॒॥ 1.14.9 PADAPAATH — ROMAN ākīm | sūryasya | rocanāt | viśvān | devān | uṣaḥ-budhaḥ | vipraḥ | hotā | iha | vakṣati देवता —        विश्वेदेवा:;       छन्द —        गायत्री;       स्वर —        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जो (होता) होम में छोड़ने योग्य वस्तुओं का देने-लेनेवाला (विप्रः) बुद्धिमान् विद्वान् पुरुष है, वही (सूर्य्यस्य) चराचर के आत्मा परमेश्वर वा सूर्य्यलोक के (रोचनात्) प्रकाश से (इह) इस जन्म वा लोक में (उषर्बुधः) प्रातःकाल को प्राप्त होकर सुखों को चितानेवालों (विश्वान्) जो कि समस्त (देवान्) श्रेष्ठ भोगों को (वक्षति) प्राप्त होता वा कराता है। वही सब विद्याओं को प्राप्त हो के आनन्दयुक्त होता है॥9॥ भावार्थ — महर्षि...