ऋग्वेद 1.22.13
मही द्यौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः॥13॥
पदपाठ — देवनागरी
म॒ही। द्यौः। पृ॒थि॒वी। च॒। नः॒। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। मि॒मि॒क्ष॒ता॒म्। पि॒पृ॒ताम्। नः॒। भरी॑मऽभिः॥ 1.22.13
PADAPAATH — ROMAN
mahī | dyauḥ | pṛthivī | ca | naḥ | imam | yajñam | mimikṣatām | pipṛtām |
naḥ | bharīma-bhiḥ
देवता — द्यावापृथिव्यौ ; छन्द — गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे उपदेश के करने और सुननेवाले मनुष्यो ! तुम दोनों जो (मही) बड़े-बड़े गुणवाले (द्यौः) प्रकाशमय बि्जुली, सूर्य्य आदि और (पृथिवी) अप्रकाशवाले पृथिवी आदि लोकों का समूह (भरीमभिः) धारण और पुष्टि करनेवाले गुणों से (नः) हमारे (इमम्) इस (यज्ञम्) शिल्पविद्यामय यज्ञ (च) और (नः) हम लोगों को (पिपृताम्) सुख के साथ अंगों से अच्छी प्रकार पूर्ण करते हैं, वे (इमम्) इस (यज्ञम्) शिल्पविद्यामय यज्ञ को (मिमिक्षताम्) सिद्ध करने की इच्छा करो तथा (पिपृताम्) उन्हीं से अच्छी प्रकार सुखों को परिपूर्ण करो॥13॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(द्यौः) यह नाम प्रकाशमान लोकों का उपलक्षण अर्थात् जो जिसका नाम उच्चारण किया हो यह उसके समतुल्य सब पदार्थों के ग्रहण करने में होता है तथा (पृथिवी) यह बिना प्रकाशवाले लोकों का है। मनुष्यों को इनसे प्रयत्न के साथ सब उपकारों को ग्रहण करके उत्तम-उत्तम सुखों को सिद्ध करना चाहिये॥13॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
13. महान् द्यु और पृथिवी हमारा यह यज्ञ रस से सिक्त करें और पोषण-द्वारा हमें पूर्ण करें।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
13. May Heaven and Earth, the Mighty Pair, bedew for us our sacrifice, And
feed us full with nourishments.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
May Heaven and Earth, the Mighty Pair, bedew for us our sacrifice, And feed
us full with nourishments. [13]
H H Wilson (On the basis of
Sayana)
13. May the great heaven and the earth be pleased to blend this sacrifice
(with their own dews) and fill us with nutriment.