ऋग्वेद 1.22.2

या सुरथा रथीतमोभा देवा दिविस्पृशा। अश्विना ता हवामहे॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
या। सु॒ऽरथा॑। र॒थिऽत॑मा। उ॒भा। दे॒वा। दि॒वि॒ऽस्पृशा॑। अ॒श्विना॑। ता। ह॒वा॒म॒हे॒॥ 1.22.2

PADAPAATH — ROMAN
yā | su-rathā | rathi-tamā | ubhā | devā | divi-spṛśā | aśvinā | tā | havāmahe

देवता —        अश्विनौ ;       छन्द        पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हम लोग (या) जो (दिविस्पृशा) आकाशमार्ग से विमान आदि यानों को एक स्थान से दूसरे स्थान में शीघ्र पहुँचाने (रथीतमा) निरन्तर प्रशंसनीय रथों को सिद्ध करनेवाले (सुरथा) जिनके योग से उत्तम-2 रथ सिद्ध होते हैं, (देवा) प्रकाशादि गुणवाले (अश्विनौ) व्याप्तिस्वभाववाले पूर्वोक्त अग्नि और जल हैं, (ता) उन (उभा) एक-दूसरे के साथ संयोग करने योग्यों को (हवामहे) ग्रहण करते हैं॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो मनुष्यों के लिये अत्यन्त सिद्धि करानेवाले अग्नि और जल हैं वे शिल्पविद्या में संयुक्त किये हुए कार्य्यसिद्धि के हेतु होते हैं॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. जो श्विनीकुमार सुन्दर रथ से युक्त हैं; रथियों में श्रेष्ठ और स्वर्गवासी हैं, उन्हें हम आह्वान करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2 We call the Asvins Twain, the Gods borne in a noble car, the best Of charioteers, who reach the heavens. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
We call the Asvins two, the gods borne in a noble car, the best Of charioteers, who reach the heavens. [2]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
2. We invoke the two Asvins, who are both divine, the best of charioteers, riding in an excellent car and attaining heaven.

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