ऋग्वेद 1.22.1

प्रातर्युजा वि बोधयाश्विनावेह गच्छताम्। अस्य सोमस्य पीतये॥1॥

पदपाठ — देवनागरी
प्रा॒तः॒ऽयुजा॑। वि। बो॒ध॒य॒। अ॒श्विनौ॑। आ। इ॒ह। ग॒च्छ॒ता॒म्। अ॒स्य। सोम॑स्य। पी॒तये॑॥ 1.22.1

PADAPAATH — ROMAN
prātaḥ-yujā | vi | bodhaya | aśvinau | ā | iha | gacchatām | asya | somasya | pītaye

देवता —        अश्विनौ ;       छन्द        पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे विद्वन मनुष्य ! जो (प्रातर्युजा) शिल्पविद्या सिद्ध यन्त्रकलाओं में पहिले बल देनेवाले (अश्विनौ) अग्नि और पृथिवी (इह) इस शिल्प व्यवहार में (गच्छताम्) प्राप्त होते हैं, इससे उनको (अस्य) इस (सोमस्य) उत्पन्न करने योग्य सुख समूह की (पीतये) प्राप्ति के लिये तुम हमको (विबोधय) अच्छी प्रकार विदित कराइये॥1॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
शिल्प कार्य्यों की सिद्धि करने की इच्छा करनेवाले मनुष्यों को चाहिये कि उसमें भूमि और अग्नि का पहले ग्रहण करें, क्योंकि इनके बिना विमान आदि यानों की सिद्धि वा गमन का सम्भव नहीं हो सकता॥1॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. पुरोहित! प्रातःसवन-सम्बन्ध से युक्त अश्विनीकुमारों को जगाओ। सोमपान के लिए वे इस यज्ञ में पधारें।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. WAKEN the Asvin Pair who yoke their car at early morn: may they Approach to drink this Soma juice. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
WAKEN the Asvin Pair who yoke their car at early morn: may they Approach to drink this soma juice. [1]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
1. Awaken the Asvins, associated for the morning sacrifice: let them both come hither to drink of this Soma juice.

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