ऋग्वेद 1.21.1
इहेन्द्राग्नी उप ह्वये तयोरित्स्तोममुश्मसि। ता सोमं सोमपातमा॥1॥
पदपाठ — देवनागरी
इ॒ह। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। उप॑। ह्व॒ये॒। तयोः॑। इत्। स्तोम॑म्। उ॒श्म॒सि॒। ता। सोम॑म्। सो॒म॒ऽपात॑मा॥ 1.21.1
PADAPAATH — ROMAN
iha | indrāgnī iti | upa | hvaye | tayoḥ | it | stomam | uśmasi | tā |
somam | soma-pātamā
देवता — इन्द्राग्नी ; छन्द — गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(इह) इस संसार होमादि शिल्प में जो (सोमपातमा) पदार्थों की अत्यन्त पालन के निमित्त और (सोमम्) संसारी पदार्थों की निरन्तर रक्षा करनेवाले (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि हैं, (ता) उनको मैं (उपह्वये) अपने समीप काम की सिद्धि के लिये वश में लाता हूँ, और (तयोः) उनके (इत्) और (स्तोमम्) गुणों के प्रकाश करने को हम लोग (उश्मसि) इच्छा करते हैं॥1॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को वायु और अग्नि के गुण जानने की इच्छा करनी चाहिये, क्योंकि कोई भी मनुष्य उनके गुणों के उपदेश वा श्रवण के बिना उपकार लेने को समर्थ नहीं हो सकते हैं॥1॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. इस यज्ञ में इन्द्र और अग्नि का मैं आह्वान करता हूँ। उन्हीं की स्तुति करना चाहता हूँ। वे ही इन्द्र और अग्निविशेष सोमपायी हैं। आवें, सोमपान करें।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. INDRA and Agni I invoke fain are we for their song of praise Chief
Soma-drinkers are they both.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
INDRA and Agni I invoke fain are we for their song of praise Chief Soma-drinkers are they both. [1]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
1. In invoke hither Indra and Agni, to whom we desire to present our praise: let them, who are both copious drinkers of the Soma juice, (accept the libation).