ऋग्वेद 1.18.4

स घा वीरो न रिष्यति यमिन्द्रो ब्रह्मणस्पतिः। सोमो हिनोति मर्त्यम्॥4॥

पदपाठ — देवनागरी
सः। घ॒। वी॒रः। न। रि॒ष्य॒ति॒। यम्। इन्द्रः॑। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। सोमः॑। हि॒नोति॑। मर्त्य॑म्॥ 1.18.4

PADAPAATH — ROMAN
saḥ | gha | vīraḥ | na | riṣyati | yam | indraḥ | brahmaṇaḥ | patiḥ | somaḥ | hinoti | martyam

देवता —        ब्रह्मणस्पतिरिन्द्रश्च सोमश्च;       छन्द        निचृद्गायत्री ;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
उक्त इन्द्र (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्ड का पालन करनेवाला जगदीश्वर और (सोमः) सोमलता आदि ओषधियों का रससमूह (यम्) जिस (मर्त्यम्) मनुष्य आदि प्राणी को (हिनोति) उन्नतियुक्त करते हैं, (सः) वह (वीरः) शत्रुओं का जीतनेवाला वीर पुरुष (न घ रिष्यति) निश्चय है कि वह विनाश को प्राप्त कभी नहीं होता॥4॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो मनुष्य वायु विद्युत् सूर्य्य और सोम आदि ओषधियों के गुणों को ग्रहण करके अपने कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वे कभी दुःखी नहीं होते॥4॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4. जिसे इन्द्र, वरुण और सोम उन्नयन करते हैं, वह वीर मनुष्य विनाश को प्राप्त नहीं होता।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
4. Ne’er is the mortal hero harmed whom Indra, Brahmanaspati, And Soma graciously inspire. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Never is the mortal hero harmed whom Indra, Brahmanaspati, And Soma graciously inspire. [4]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
4. The liberal man, whom Indra, Brahmanaspati, and Soma protect, never perishes.

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