ऋग्वेदः 1.15.11
अश्विना पिबतं मधु दीद्यग्नी शुचिव्रता। ऋतुना यज्ञवाहसा॥11॥
पदपाठ — देवनागरी
अश्वि॑ना। पिब॑तम्। मधु॑। दीद्य॑ग्नी॒ इति॒ दीदि॑ऽअग्नी। शु॒चि॒ऽव्र॒ता॒। ऋ॒तुना॑। य॒ज्ञ॒ऽवा॒ह॒सा॒॥ 1.15.11
PADAPAATH — ROMAN
aśvinā | pibatam | madhu | dīdyagnī itidīdi-agnī | śuci-vratā | ṛtunā |
yajña-vāhasā
देवता — अश्विनौ ; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे विद्वान् लोगो ! तुमको जो (शुचिव्रता) पदार्थों की शुद्धि करने (यज्ञवाहसा) होम किये हुये पदार्थों को प्राप्त कराने तथा (दीद्यग्नी) प्रकाश हेतुरूप अग्निवाले (अश्विना) सूर्य्य और चन्द्रमा (मधु) मधुर रस को (पिबतम्) पीते हैं, जो (ॠतुना) ॠतुओं के साथ रसों को प्राप्त करते हैं, उनको यथावत् जानो॥11॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर उपदेश करता है, कि मैंने जो सूर्य्य चन्द्रमा तथा इस प्रकार मिले हुए अन्य भी दो-दो पदार्थ कार्य्यों की सिद्धि के लिये संयुक्त किये हैं। हे मनुष्यो !तुम अच्छी प्रकार सब ॠतुओं के सुख तथा व्यवहार की सिद्धि को प्राप्त करते हैं। इनको सब लोग समझें॥11॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
11. प्रकाशमान अग्नि से संयुक्त और विशुद्ध-कर्मा अश्विकुमार द्वय! मधु, सोम पान करो। तुम्हीं ऋतुओं के साथ यज्ञ के निर्वाहक हो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
11. Drink ye the meath, O Asvins bright with flames, whose acts are pure.
who with Rtus accept the sacrifice.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Drink you the meath, Asvins bright with flames, whose acts are pure. who
with Ritus accept the sacrifice. [11]
Horace Hayman Wilson (On the
basis of Sayana)
11. Asvins, performers of pious acts, bright with sacrificial fires,
acceptors, with the Rtus, of the sacrifice drink the sweet draught.