ऋग्वेदः 1.15.7

द्रविणोदा द्रविणसो ग्रावहस्तासो अध्वरे। यज्ञेषु देवमीळते॥7॥

पदपाठ — देवनागरी
द्र॒वि॒णः॒ऽदाः। द्रवि॑णसः। ग्राव॑ऽहस्तासः। अ॒ध्व॒रे। य॒ज्ञेषु॑। दे॒वम्। ई॒ळ॒ते॒॥ 1.15.7

PADAPAATH — ROMAN
draviṇaḥ-dāḥ | draviṇasaḥ | grāva-hastāsaḥ | adhvare | yajñeṣu | devam | īḷate

देवता        द्रविणोदाः ;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(द्रविणोदाः) जो विद्या बल राज्य और धनादि पदार्थों का देने और दिव्य गुणवाला परमेश्वर तथा उत्तम धन आदि पदार्थ देने और दिव्यगुणवाला भौतिक अग्नि है। जिस (देवम्) देव को (ग्रावहस्तासः) स्तुति समूह ग्रहण वा हनन और पत्थर आदि यज्ञ सिद्ध करनेहारे शिल्पविद्या के पदार्थ हाथ में हैं, जिनके ऐसे जो (द्रविणसः) यज्ञ करने वा द्रव्यसम्पादक विद्वान् हैं, वे (अध्वरे) अनुष्ठान करने योग्य क्रियासाध्य हिंसा के अयोग्य और (यज्ञेषु) अग्निहोत्र आदि अश्वमेध पर्य्यन्त वा शिल्पविद्यामय यज्ञों में (ईळते) पूजन वा उसके गुणों का खोज करके संयुक्त करते हैं, वे ही मनुष्य सदा आनन्दयुक्त रहते हैं॥7॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। सब मनुष्यों को सब कर्म उपासना तथा ज्ञानकाण्ड यज्ञों में परमेश्वर ही की पूजा तथा भौतिक अग्नि होम वा शिल्पादि कामों में अच्छी प्रकार संयुक्त करने योग्य है॥7॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
7. नानाविध यज्ञों में धनाभिलाषी पुरोहित सोमरस तैयार करने के लिए हाथ में पत्थर लेकर द्रविणोदा या धनप्रद अग्नि की स्तुति करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
7. The Soma-pressers, fain for wealth, praise the Wealth-giver in the rite, In sacrifices praise the God. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
The soma-pressers, fain for wealth, praise the Wealth-giver in the rite, In sacrifices praise the god. [7]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
7. (The priests) desirous of wealth, holding stones in their hands, praise the divine (Agni) Dravinodas,1. both in the primary and subsidiary sacrifices.
Grava-hastasah1. having stones in their hands, with which to bruise the Soma plant. The Grava-van is also one of the sixteen priests; but it is here used generally. Dravinodas is either an epithet or an appellative of Agni, as the donor (das) of wealth, or of strength, dravina. In the adhvara and in the yajnas, the first is said to be the primary or essential ceremony, Prakrti-rupa, such as the Agnistoma; the second, the modified ceremonies, vikrti-rupesu; such as Ukthya, which is elsewhere termed an offering with Soma juice- Somasamsthayagam.

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