ऋग्वेदः 1.13.10

इह त्वष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप ह्वये। अस्माकमस्तु केवलः॥10॥

पदपाठ — देवनागरी
इ॒ह। त्वष्टा॑रम्। अ॒ग्रि॒यम्। वि॒श्वऽरू॑पम्। उप॑। ह्व॒ये॒। अ॒स्माक॑म्। अ॒स्तु॒। केव॑लः॥ 1.13.10

PADAPAATH — ROMAN
iha | tvaṣṭāram | agriyam | viśva-rūpam | upa | hvaye | asmākam | astu | kevalaḥ

देवता        त्वष्टा ;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मैं जिस (विश्वरूपम्) सर्वव्यापक (अग्रियम्) सब वस्तुओं के आगे होने तथा (त्वष्टारम्) सब दुःखों के नाश करनेवाले परमात्मा को (इह) इस घर में (उपह्वये) अच्छी प्रकार आह्वान करता हूँ, वही (अस्माकम्) उपासना करनेवाले हम लोगों का (केवलः) इष्ट और स्तुति करने योग्य (अस्तु) हो।1।

और मैं (विश्वरूपम्) जिसमें सब गुण हैं, (अग्रियम्) सब साधनों के आगे होने तथा (त्वष्टारम्) सब पदार्थों को अपने तेज से अलग-2 करनेवाले भौतिक अग्नि के (इह) इस शिल्पविद्या में (उपह्वये) जिसको युक्त करता हूँ, वह (अस्माकम्) हवन तथा शिल्पविद्या के सिद्ध करनेवाले हम लोगों का (केवलः) अत्युत्तम साधन (अस्तु) होता है।2।॥10॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। मनुष्यों को अनन्तसुख देनेवाले ईश्वर ही की उपासना करना चाहिये, तथा जो यह भौतिक अग्नि सब पदार्थों का छेदन करने, सब रूप गुण और पदार्थों का प्रकाश करने, सबसे उत्तम और हम लोगों की शिल्पविद्या का अद्वितीय साधन है, उसका उपयोग शिल्पविद्या में यथावत् करना चाहिये॥10॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. उत्तम और नानी-रूपधारी त्वष्टी (अग्नि) को इस यज्ञ में बुलाते हैं। त्वष्टा केवल हमारे पक्ष मे ही रहें।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. Tvastar I call, the earliest born, the wearer of all forms at will: May he be ours and curs alone. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Tvastar I call, the earliest born, the wearer of all forms at will: May he be ours and curs alone. [10]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
10. I invoke the chief and multiform Tvastr; may he be solely ours.
Tvasta, in the popular system, is identified with Visvakarma, the artificer of the gods; and he seems to possess some attributes of that nature in the Vedas, being called the fabricator of the original sacrificial vase or ladle.
A text of the Veda is also quoted, which attributes to him the formation of the forms of animals in pairs: Tvasta vai pasunam mithunanam rupakrt- iti Srute1. He is also one of the twelve Adityas, and here is said to be an Agni: Tvastr-namakam agnim.

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