ऋग्वेदः 1.12.1
अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्। अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम्॥1॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒ग्निम्। दू॒तम्। वृ॒णी॒म॒हे॒। होता॑रम्। वि॒श्वऽवे॑दसम्। अ॒स्य। य॒ज्ञस्य॑। सु॒ऽक्रतु॑म्॥ 1.12.1
PADAPAATH — ROMAN
agnim | dūtam | vṛṇīmahe | hotāram | viśva-vedasam | asya | yajñasya |
su-kratum
देवता — अग्निः ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
क्रिया करने की इच्छा करनेवाले हम मनुष्य लोग (अस्य) प्रत्यक्ष सिद्ध करने योग्य (यज्ञस्य) शिल्पविद्यारूप यज्ञ के (सुक्रतुम्) जिससे उत्तम-2 क्रिया सिद्ध होती हैं, तथा (विश्ववेदसम्) जिससे कारीगरों को सब शिल्प आदि साधनों का लाभ होता है। (होतारम्) यानों में वेग आदि को देने (दूतम्) पदार्थों को एक देश से दूसरे देश को प्राप्त करने (अग्निम्) सब पदार्थों को अपने तेज से छिन्न-भिन्न करनेवाले भौतिक अग्नि को (वृणीमहे) स्वीकार करते हैं॥1॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर सब मनुष्यों को आज्ञा देता है कि- यह प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष से विद्वानों ने जिसके गुण प्रसिद्ध किये हैं, तथा पदार्थों को ऊपर नीचे पहुँचाने से दूत-स्वभाव तथा शिल्पविद्या से जो कलायन्त्र बनते हैं, उनके चलाने में हेतु और विमान आदि यानों में वेग आदि क्रियाओं का देनेवाला भौतिक अग्नि अच्छी प्रकार विद्या से सब सज्जनों के उपकार के लिये निरन्तर ग्रहण करना चाहिये, जिससे सब उत्तम-2 सुख हों॥1॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. देवदूत, देवाह्वानकारी, निखिल-सम्पत्संयुक्त और इस यज्ञ के सुसम्पादक अग्नि को हम भजते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. WE choose Agni the messenger, the herald, master of all wealth, Well skilled in this our sacrifice.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
WE choose Agni the messenger, the herald, master of all wealth, Well
skilled in this our sacrifice. [1]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
1. We select Agni, the messenger of the gods, their invoker, the possessor of all riches, the perfecter of this rite.
The Messenger of the Gods- The commentator cites the Taittiriya Brahmana in confirmation of this function; Usanas, the son of Kavi, being the messenger of the Asuras. Agnir devanam duta asid; Usanah kavya asuranam.1
- तै. सं. 1.5.8.5