ऋग्वेदः 1.10.11

आ तू न इन्द्र कौशिक मन्दसानः सुतं पिब। नव्यमायुः प्र सू तिर कृधी सहस्रसामृषिम्॥11॥

पदपाठ — देवनागरी
आ। तु। नः॒। इ॒न्द्र॒। कौ॒शि॒क॒। म॒न्द॒सा॒नः। सु॒तम्। पि॒ब॒। नव्य॑म्। आयुः॑। प्र। सु। ति॒र॒। कृ॒धि। स॒ह॒स्र॒ऽसाम्। ऋषि॑म्॥ 1.10.11

PADAPAATH — ROMAN
ā | tu | naḥ | indra | kauśika | mandasānaḥ | sutam | piba | navyam | āyuḥ | pra | su | tira | kṛdhi | sahasra-sām | ṛṣim

देवता        इन्द्र:;       छन्द        अनुष्टुप् ;       स्वर        गान्धारः ;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (कौशिक) सब विद्याओं के उपदेशक और उनके अर्थों के निरन्तर प्रकाश करनेवाले, (इन्द्र) सर्वानन्दस्वरूप परमेश्वर! (मन्दसानः) आप उत्तम-2 स्तुतियों को प्राप्त हुए और सबको यथायोग्य जानते हुए, (नः) हमलोगों के, (सुतम्) यत्न से उत्पन्न किये हुये सोमादि रस वा प्रिय शब्दों से की हुई स्तुतियों का, (आ) अच्छी प्रकार, (पिब) पान कराइये, (तु) और कृपा करके हमारे लिये, (नव्यम्) नवीन, (आयुः) अर्थात् निरन्तर जीवन को, (प्रसूतिर) दीजिये, तथा (नः) हमलोगों में, (सहस्रसाम्) अनेक विद्याओं के प्रकट करनेवाले, (ॠषिम्) वेदवक्ता पुरुष को भी, (कृधि) कीजिये॥11॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो मनुष्य अपने प्रेम से विद्या का उपदेश करनेवाला होकर अर्थात् जीवों के लिये सब विद्याओं का प्रकाश सर्वदा शुद्ध परमेश्वर की स्तुति के साथ आश्रय करते हैं, वे सुख और विद्यायुक्त पूर्ण आयु तथा ॠषि भाव को प्राप्त होकर सब विद्या चाहनेवाले मनुष्यों को प्रेम के साथ उत्तम-2 विद्या से विद्वान् से करते हैं॥11॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
11. इन्द्र! शीघ्र हमारे पास आओ। हे कुशिक ऋषि के पुत्र! प्रसन्न होकर सोमरस पान करो। कार्यकारी शक्ति बढ़ाओ। इस ऋषि को सहस्र-धन-सम्पन्न करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
11. O Indra, Son of Kusika, drink our libation with delight. Prolong our life anew, and cause the seer to win a thousand gifts.  

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Indra, Son of Kusika, drink our libation with delight. Prolong our life anew, and cause the seer to win a thousand gifts. [11]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
11. Come quickly, Indra, son of Kusika, delighted drink the libation; prolong the life that merits commendation; make me, who am a Rsi abundantly endowed (with possessions).
In all the Pauranika genealogies, the son of Kusika is the sage Visvamitra; and in order to explain its application to Indra, Sayana quoted the legend given in the Index (Anukramanika 3.1), which states that Kusika, the son of Isirathi, being desirous of a son equal to Indra, adopted a life of continence, in requital of which, Indra was born as the son of Gathi,1. the Gadhi of the Puranas.

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