ऋग्वेदः 1.10.6
तमित्सखित्व ईमहे तं राये तं सुवीर्ये। स शक्र उत नः शकदिन्द्रो वसु दयमानः॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
तम्। इत्। स॒खि॒ऽत्वे। ई॒म॒हे॒। तम्। रा॒ये। तम्। सु॒ऽवीर्ये॑। सः। श॒क्रः। उ॒त। नः॒। श॒क॒त्। इन्द्रः॑। वसु॑। दय॑मानः॥ 1.10.6
PADAPAATH — ROMAN
tam | it | sakhi-tve | īmahe | tam | rāye | tam | su-vīrye | saḥ | śakraḥ |
uta | naḥ | śakat | indraḥ | vasu | dayamānaḥ
देवता
— इन्द्र:; छन्द — निचृदनुष्टुप्; स्वर — गान्धारः ;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो (नः) हमारे लिये, (दयमानः) सुखपूर्वक रमणकरने योग्य विद्या अयोग्यता और सुवर्णादि धनका देनेवाला विद्यादि गुणों का प्रकाशक और निरन्तर रक्षक तथा दुःख दोष वा शत्रुओं के विनाश और अपने धार्मिक सज्जन भक्तों के ग्रहण करने, ((शक्रः) अनन्त सामर्थ्ययुक्त, (इन्द्रः) दुःखों का विनाश करनेवाला जगदीश्वर है वही, (वसु) विद्या और चक्रवर्त्ति राज्यादि परम धन देने को, (शकत्) समर्थ है। (तमित्) उसी को हमलोग, (उत) वेदादि शास्त्र सब विद्वान् प्रत्यक्षादि प्रमाण और अपने भी निश्चय से, (सखित्वे) मित्रों और अच्छे कर्मों के होने के निमित्त, (तं) उसको (राये) पूर्वोक्त विद्यादि धन के अर्थ और, (तं) उसी को, (सुवीर्य्ये) श्रेष्ठ गुणों से युक्त उत्तम पराक्रम की प्राप्ति के लिये, (ईमहे) याचते हैं॥6॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
सब मनुष्यों को उचित है कि सब सुख और शुभगुणों की प्राप्ति के लिये परमेश्वर ही की प्रार्थना करें, क्योंकि वह अद्वितीय सर्वमित्र परमैश्वर्य्यवाला अनन्तर शक्तिमान् ही का उक्त पदार्थों के देने में सामर्थ्य है॥6॥
यह उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. हम लोग मैत्री, धन और शक्ति के लिए इन्द्र के पास जाते हैं और शक्तिशाली इन्द्र हमें धन देकर हमारी रक्षा करते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Him, him we seek for friendship, him for riches and heroic might. For
Indra, he is Sakra, he shall aid us while he gives us wealth.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Him, him we seek for friendship, him for riches and heroic might. For Indra, he is Sakra, he shall aid us while he gives us wealth. [6]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. We have recourse to Indra for his friendship, for wealth, for perfect might; for he, the powerful Indra, conferring wealth, is able (to protect us).