ऋग्वेदः 1.7.6
स नो वृषन्नमुं चरुं सत्रादावन्नपा वृधि। अस्मभ्यमप्रतिष्कुतः॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
सः। नः॒। वृ॒ष॒न् अ॒मुम्। च॒रुम्। सत्रा॑ऽदावन्। अप॑। वृ॒धि॒। अ॒स्मभ्य॑म्। अप्र॑तिऽस्कुतः॥ 1.7.6
PADAPAATH — ROMAN
saḥ | naḥ | vṛṣan amum | carum | satrādāvan | apa | vṛdhi | asmabhyam | aprati-skutaḥ
देवता — इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (वृषन्) सुखों के वर्षाने और (सत्रादावन्) सत्यज्ञान को देनेवाले (सः) परमेश्वर ! आप (अस्मभ्यम्) जो कि हम लोग आपकी आज्ञा वा अपने पुरुषार्थ में वर्त्तमान हैं उनके लिये (अप्रतिष्कुतः) निश्चय करानेहारे (नः) हमारे (अमुं) उस आनन्द करनेहारे प्रत्यक्ष मोक्ष का द्वार (चरुं) ज्ञान लाभ को (अपावृधि) खोल दीजिये। तथा हे परमेश्वर ! जो यह आपका बनाया हुआ (वृषन्) जल को वर्षाने और (सत्रादावन्) उत्तम-2 पदार्थों को प्राप्त करानेवाला (अप्रतिष्कुतः) अपनी कक्षा ही में स्थिर हुआ सूर्य्य (अस्मभ्यं) हम लोगों के लिये (अमुं) आकाश में रहने वाले इस मेघ को (अपावृधि) भूमि में गिरा देता है॥6॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो मनुष्य अपनी दृढ़ता से सत्यविद्या का अनुष्ठान और नियम से ईश्वर की आज्ञा का पालन करता है, उसके आत्मा में से अविद्या रूपी अन्धकार का नाश अन्तर्यामी परमेश्वर कर देता है, जिससे वह पुरुष धर्म और पुरुषार्थ को कभी नहीं छोड़ता॥6॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. अभीष्ट-फलदाता और वृष्टिप्रद इन्द्र! तुम हमारे लिए इस मेघ को भेदन करो। तुमने कभी भी हमारी प्रार्थना अस्वीकार नहीं की।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Unclose, our manly Hero, thou for ever bounteous, yonder cloud, For us, thou irresistible.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Unclose, our manly hero, you forever bounteous, yonder cloud, For us, you irresistible. [6]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. Shedder of rain, granter of all desires, set open this could. You are never uncompliant with our (requests).