ऋग्वेदः 1.6.2

युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे। शोणा धृष्णू नृवाहसा॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
यु॒ञ्जन्ति॑। अ॒स्य॒। काम्या॑। हरी॒ इति॑। विप॑क्षसा। रथे॑। शोणा॑। धृ॒ष्णू इति॑। नृ॒ऽवाह॑सा॥ 1.6.2

PADAPAATH — ROMAN
yuñjanti | asya | kāmyā | harī iti | vipakṣasā | rathe | śoṇā | dhṛṣṇū iti | nṛ-vāhasā

देवता        इन्द्र:;       छन्द        विराड्गायत्री ;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो विद्वान् (अस्य) सूर्य्य और अग्नि के (काम्या) सबके इच्छा करने योग्य (शोणा) अपने-2 वर्ण के प्रकाश करने हारे वा गमन के हेतु (धृष्णू) दृढ़ (विपक्षसा) विविधकला और जल के चक्र घूमनेवाले पांखरूप यन्त्रों से युक्त (नृवाहसा) अच्छी प्रकार सवारियों में जुडे हुये मनुष्यादिकों को देश-देशान्तर में पहुँचाने वाले (हरी) आकर्षण और वेग तथा शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष रूप दो घोड़े जिनसे सबका हरण किया जाता है, इत्यादि श्रेष्ठ गुणों को पृथिवी जल और आकाश में जाने-आने के लिये अपने-2 रथों में (युंजन्ति) जोड़ें॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर उपदेश करता है कि मनुष्य लोग जबतक भू जल आदि पदार्थों के गुणज्ञान और उनके उपकार से भू जल और आकाश में जाने-आने के लिये अच्छी सवारियों को नहीं बनाते, तब तक उनको उत्तम राज्य और धन आदि उत्तम सुख नहीं मिल सकते॥2॥
जरमन देश के रहने वाले मोक्षमूलर साहब ने इस मन्त्र का विपरीत व्याख्यान किया है सो यह है कि (अस्य) सर्वनामवाची इस शब्द के निर्देश से स्पष्ट मालूम होता है कि इस मन्त्र में इन्द्रदेवता का ग्रहण है क्योंकि लाल रंग के घोडे इन्द्र ही के हैं और यहां सूर्य्य तथा उषा का ग्रहण नहीं क्योंकि प्रथम मन्त्र में एक घोड़े का ही ग्रहण किया है। यह उनका अर्थ ठीक नहीं क्योंकि (अस्य) इस पद से भौतिक जो सूर्य्य और अग्नि है। इन्हीं दोनों का ग्रहण है किसी देहधारी का नहीं। (हरी) इस पद से सूर्य्य के धारण और आकर्षण गुणों का ग्रहण तथा (शोणा) इस शब्द से अग्नि की लाल लपटों के ग्रहण होने से और पूर्व मन्त्र में एक अश्व का ग्रहण जाति के अभिप्राय से अर्थात् एकवचन से अश्वजाति का ग्रहण होता है और (अस्य) यह शब्द प्रत्यक्ष अर्थ का वाची होने से सूर्य्यादि प्रत्यक्ष पदार्थों का ग्राहक होता है इत्यादि हेतुओं से मोक्षमूलर साहब का अर्थ सही नहीं॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. वे मनुष्य इन्द्र के रथ में सुन्दर, तेजस्वी, लाल और पुरुष-वाहक हरि नाम के घोड़ों को संयोजित करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2. On both sides to the car they yoke the two bay coursers dear to him, Bold, tawny, bearers of the Chief. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
On both sides to the car they yoke the two bay coursers dear to him, Bold, tawny, bearers of the Chief. [2]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. They (the charioteers) harness to his car his two desirable coursers, placed on either hand, bay coloured, high-spirited, chief­-bearing.
The horses of Indra are named Hari1, usually considered as denoting their colour, green or yellow, or as Rosen has it, flavi. In this same verse we have them presently described as Sona, crimson, bright bay, or chestnut.
Placed on Either Hand- Vipaksasa, harnessed on different sides. Sayana says of the chariot, we should say of the pole, but the Hindu ratha2 may not have had a pole.
Chief-Bearing- Literally, men-bearing- nrvahasa.

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