ऋग्वेदः 1.5.3
स घा नो योग आ भुवत्स राये स पुरंध्याम् । गमद्वाजेभिरा स नः ॥3॥
पदपाठ — देवनागरी
सः । घ॒ । नः॒ । योगे॑ । आ । भु॒व॒त् । सः । रा॒ये । सः । पुर॑म्ऽध्याम् । गम॑त् । वाजे॑भिः । आ । सः । नः॒ ॥ 1.5.3
PADAPAATH — ROMAN
saḥ | gha | naḥ | yoge | ā | bhuvat | saḥ | rāye | saḥ | puram-dhyām | gamat | vājebhiḥ | ā | saḥ | naḥ
देवता — इन्द्र:; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(सः) पूर्वोक्त इन्द्र परमेश्वर और स्पर्शवान् वायु (नः) हम लोगों के (योगे) सब सुखों के सिद्ध करानेवाले वा पदार्थों को प्राप्त करानेवाले योग तथा (सः) वे ही (राये) उत्तम धन के लाभ के लिये और (सः) वे (पुरन्ध्याम्) अनेक शास्त्रों की विद्याओं से युक्त बुद्धिमें (आ भुवत्) प्रकाशित हों इसी प्रकार (सः) वे (वाजेभिः) उत्तम अन्न और विमान आदि सवारियों के सहवर्त्तमान (नः) हम लोगों को (आगमत्) उत्तम सुख होने का ज्ञान देता तथा यह वायु भी इस विद्या की सिद्धि में हेतु होता है ॥3॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इसमें भी श्लेषालंकार है। ईश्वर पुरुषार्थी मनुष्य का सहायकारी होता है आलसी का नहीं, तथा स्पर्शवान् वायु भी पुरुषार्थ ही से कार्य्यसिद्धि का निमित्त होता है, क्योंकि किसी प्राणी को पुरुषार्थ के विना धन वा बुद्धि का और इनके बिना उत्तम सुखका लाभ कभी नहीं हो सकता। इसलिये सब मनुष्यों को उद्योगी अर्थात् पुरुषार्थी आशावाले अवश्य होना चाहिये ॥3॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. अनन्तगुण-सम्पन्न वे ही इन्द्र हमारे उद्देश्यों का साधन करें, धन दें, बहुविध बुद्धि प्रदान करें और अन्न को साथ लेकर हमारे पास आगमन करें।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. May he stand by us in our need and in abundance for our wealth: May he come nigh us with his strength.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
May he stand by us in our need and in abundance for our wealth: May he come near to us with his strength. [3]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
1. May he be to us for the attainment of our objects; may he be to us for the acquirement of riches; may he be to us for the acquisition of knowledge; may he come to us with food.