ऋग्वेदः 1.3.10

पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं वष्टु धियावसुः ॥10॥

पदपाठ — देवनागरी
पा॒व॒का । नः॒ । सर॑स्वती । वाजे॑भिः । वा॒जिनी॑ऽवती । य॒ज्ञम् । व॒ष्टु॒ । धि॒याऽव॑सुः ॥ 1.3.10

PADAPAATH — ROMAN
pāvakā | naḥ | sarasvatī | vājebhiḥ | vājinī-vatī | yajñam | vaṣṭu | dhiyāvasuḥ

देवता        सरस्वती;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(वाजेभिः) जो सब विद्या की प्राप्ति के निमित्त अन्न आदि पदार्थ हैं और जो उनके साथ (वाजिनीवती) विद्या से सिद्ध की हुई क्रियाओं से युक्त (धियावसुः) शुद्ध कर्म से साथ वास देने और (पावका) पवित्र करनेवाले व्यवहारों को चितानेवाली (सरस्वती) जिसमें प्रशंसा योग्य ज्ञान आदि गुण हों ऐसी उत्तम सब विद्याओं की देनेवाली वाणी है वह हम लोगों के (यज्ञम्) शिल्प विद्या के महिमा और कर्मरूप यज्ञको (वष्टु) प्रकाश करनेवाली हो ॥10॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
सब मनुष्यों को चाहिये कि वे ईश्वर की प्रार्थना और अपने पुरुषार्थ से सत्य विद्या और सत्य वचनयुक्त कामों में कुशल और सबके उपकार करनेवाली वाणी को प्राप्त रहें, यह ईश्वर का उपदेश है ॥10॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. पतितपावनी, अन्न-युक्त और धनदात्री सरस्वती धन के साथ हमारे यज्ञ की कामना करें।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. Wealthy in spoil, enriched with  HYMNs, may bright Sarsavad desire, With eager love, our sacrifice. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Wealthy in spoil, enriched with hymns, may bright Sarsavad desire, With eager love, our sacrifice. [10]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
10. May Sarasvati, the purifier, the bestower of food, the recompenser of worship with wealth, be attracted by our offered viands to our rite.
Sarasvati is here, as elsewhere, the Vag-devata, divinity of speech; other attributes are alluded to in the text; the three stanzas forming a trc (le=ned) to be repeated at her worship.

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