ऋग्वेदः 1.3.7

ओमासश्चर्षणीधृतो विश्वे देवास आ गत । दाश्वांसो दाशुषः सुतम् ॥7॥

पदपाठ — देवनागरी
ओमा॑सः । च॒र्ष॒णि॒ऽधृतः॒ । विश्वे॑ । दे॒वा॒सः॒ । आ । ग॒त॒ । दा॒श्वांसः॑ । दा॒शुषः॑ । सु॒तम् ॥ 1.3.7

PADAPAATH — ROMAN
omāsaḥ | carṣaṇi-dhṛtaḥ | viśve | devāsaḥ | ā | gata | dāśvāṃsaḥ | dāśuṣaḥ | sutam

देवता        विश्वेदेवा:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(ओमासः) जो अपने गुणों से संसार के जीवों की रक्षा करने ज्ञानसे परिपूर्ण विद्या और उपदेश में प्रीति रखने विज्ञानसे तृप्त यथार्थ निश्चययुक्त शुभगुणों को देने और सब विद्याओं को सुनाने परमेश्वर के जानने के लिये पुरुषार्थी श्रेष्ठ विद्या के गुणों की इच्छा से दुष्ट गुणों के नाश करने अत्यन्त ज्ञानवान् (चर्षणीधृतः) सत्य उपदेशसे मनुष्योंके सुखके धारण करने और कराने (दाश्वांसः) अपने शुभगुणों से सबको निर्भय करनेहारे (विश्वेदेवासः) सब विद्वान् लोग हैं वे (दाशुषः) सज्जन मनुष्यों के सामने (सुतम्) सोम आदि पदार्थ और विज्ञान का प्रकाश (आगत) नित्य करते रहें ॥7॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर विद्वानों को आज्ञा देता है कि- तुम लोग एक जगह पाठशाला में अथवा इधर-उधर देश-देशान्तरों में भ्रमते हुये अज्ञानी पुरुषों को विद्यारूपी ज्ञान देके विद्वान् किया करो, कि जिससे सब मनुष्य लोग विद्या धर्म और श्रेष्ठ शिक्षायुक्त होके अच्छे-अच्छे कर्मों से युक्त होकर सदा सुखी रहें ॥7॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
7. हे विश्वेदेव! तुम रक्षक हो तथा मनुष्यों के पालक। तुम हव्यदाता यजमान के प्रस्तुत सोमरस के लिए आओ। तुम यज्ञ-फल-दाता हो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
7 Ye Visvedevas, who protect, reward, and cherish men, approach Your worshipper’s drink-offering. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
You Visvedevas, who protect, reward, and cherish men, approach Your worshipper’s drink-offering. [7]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
7. Universal Gods, protectors and supporters of men, bestowcrs (of rewards) come to the libation of the worshipper.
Universal Gods- The Visvedevas are sometimes vaguely applied to divinities in general; but they also form a class, whose station and character are imperfectly noticed, but who are entitled, at most religious rites, to share in the solemnity. In this and the two next stanzas, forming a trca or triad, to be recited at the worship of the Visvedevas, some of their attributes are particularized, connecting them with the elements.”

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