ऋग्वेदः 1.3.6
इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रह्माणि हरिवः । सुते दधिष्व नश्चनः ॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
इन्द्र॑ । आ । या॒हि॒ । तूतु॑जानः । उप॑ । ब्रह्मा॑णि । ह॒रि॒ऽवः॒ । सु॒ते । द॒धि॒ष्व॒ । नः॒ । चनः॑ ॥ 1.3.6
PADAPAATH — ROMAN
indra | ā | yāhi | tūtujānaḥ | upa | brahmāṇi | hari-vaḥ | sute | dadhiṣva
| naḥ | canaḥ
देवता
— इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(हरिवः) जो वेगादि गुणयुक्त (तूतुजानः) शीघ्र चलनेवाला (इन्द्र) भौतिक वायु है वह (सुते) प्रत्यक्ष उत्पन्न वाणीके व्यवहार में (नः) हमारे लिये (ब्रह्माणि) वेद के स्तोत्रों को (आयाहि) अच्छी प्रकार प्राप्त करता है तथा वह (नः) हम लोगों के (चनः) अन्नदि व्यवहार को (दधिष्व) धारण करता है ॥6॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो शरीरस्थ प्राण है वह सब क्रिया का निमित्त होकर खाना-पीना पकाना ग्रहण करना और त्यागना आदि क्रियाओं से कर्म का कराने तथा शरीर में रुधिर आदि धातुओं के विभागों को जगह-जगह में पहुँचानेवाला है, क्योंकि वही शरीर आदि की पुष्टि वृद्धि और नाश का हेतु है ॥6॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. हे अश्वशाली इन्द्र! हमारी प्रार्थना सुनने शीघ्र आओ। सोमरस-संयुक्त यज्ञ में हमारा अन्न धारण करो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6 Approach, O Indra, hasting thee, Lord of Bay Horses, to the prayers. In our libation take delight.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Approach, Indra, hasting you, lord of bay horses, to the prayers. Take delight in our libation.
[6]Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. Fleet Indra with the tawny coursers, come hither to the prayers (of the priest), and in this libation accept our (proffered) food.