ऋग्वेद 1.26.5

पूर्व्य होतरस्य नो मन्दस्व सख्यस्य च। इमा उ षु श्रुधी गिरः॥5॥

पदपाठ — देवनागरी
पूर्व्य॑। हो॒तः॒। अ॒स्य। नः॒। मन्द॑स्व। स॒ख्यस्य॑। च॒। इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। सु। श्रु॒धी॒। गिरः॑॥ 1.26.5

PADAPAATH — ROMAN
pūrvya | hotaḥ | asya | naḥ | mandasva | sakhyasya | ca | imāḥ | oṃ iti | su | śrudhī | giraḥ

देवता —        अग्निः ;       छन्द        विराड्गायत्री ;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (पूर्व्य) पूर्व विद्वानों ने किये हुए मित्र (होतः) यज्ञ करने वा करानेवाले विद्वान् ! तू (नः) हमारे (अस्य) इस (सख्यस्य) मित्रकर्म की (मन्दस्व)इच्छा कर (उ) निश्चय है कि हम लोगों को (इमाः) ये जो प्रत्यक्ष (गिरः) वेद विद्या से संस्कार की हुई वाणी हैं उनको (सु श्रुधि) अच्छे प्रकार सुन और सुनाया कर॥5॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को उचित है कि सब मनुष्यों से मित्रता रखकर उत्तम शिक्षा और विद्या को पढ़ सुन और विचार के विद्वान् होवें॥5॥              

यह बीसवां वर्ग पूरा हुआ॥20॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. हे पुराण होम सम्पादक, हमारे इस यज्ञ और मित्रता में तुम प्रसन्न बनो। यह स्तुति-वचन श्रवण करो।

R T H Griffith
5. O ancient Herald, be thou glad in this our rite and fellowship: Hearken thou well to these our songs. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
A
ncient Herald, be you glad in this our rite and fellowship: Listen you well to these our songs. [5]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
5. Preceding sacrificer, be pleased with this our sacrifice and with our friendship, and listen to these your praises. Purvya Hota, the Hota born before us, according to Sayana.

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