ऋग्वेद 1.25.19

इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृळय। त्वामवस्युरा चके॥19॥

पदपाठ — देवनागरी
इ॒मम्। मे॒। व॒रु॒ण॒। श्रुधि॑। हव॑म्। अ॒द्य। च॒। मृ॒ळ॒य॒। त्वाम्। अ॒व॒स्युः। आ। च॒क्रे॒॥ 1.25.19

PADAPAATH — ROMAN
imam | me | varuṇa | śrudhi | havam | adya | ca | mṛḷaya | tvām | avasyuḥ | ā | cakre

देवता —        वरुणः;       छन्द        निचृद्गायत्री ;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (वरुण) सबसे उत्तम विपश्चित् ! (अद्य) आज (अवस्युः) अपनी रक्षा वा विज्ञान को चाहता हुआ मैं (त्वाम्) आपकी (आ चके) अच्छी प्रकार प्रशंसा करता हूँ आप (मे) मेरी की हुई (हवम्) ग्रहण करने योग्य स्तुति को (श्रुधि)श्रवण कीजिये तथा मुझको (मृळय) विद्या दान से सुख दीजिये॥19॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे परमात्मा जो उपासक लोग निश्चय करके सत्य भाव और प्रेम के साथकी हुई स्तुतियों को अपने सर्वज्ञपन से यथावत् सुनकर उनके अनुकूल स्तुतिकरनेवालों को सुख देता है वैसे विद्वान् लोग भी धार्मिक मनुष्यों की योग्यप्रशंसा को सुन सुखयुक्त किया करें॥19॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
19. वरुण! मेरा यह आह्वान सुनो। आज मुझे सुखी करो। तुम्हारी रक्षा का अभिलाषी होकर मैं तुम्हें बुलाता हूँ।

R T H Griffith
19. Varuna, hear this call of mine: be gracious unto us this day Longing for help I cried to thee. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Varuna, hear this call of mine: be gracious to us this day Longing for help I cried to you. [19]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
19. Hear, Varuna, this my invocation; make us this day happy: I have appealed to you, hoping for protection.

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