ऋग्वेद 1.25.18

दर्शं नु विश्वदर्शतं दर्शं रथमधि क्षमि। एता जुषत मे गिरः॥18॥

पदपाठ — देवनागरी
दर्श॑म्। नु। वि॒श्वऽद॑र्शतम्। दर्श॑म्। रथ॑म्। अधि॑। क्षमि॑। ए॒ताः। जु॒ष॒त॒। मे॒। गिरः॑॥ 1.25.18

PADAPAATH — ROMAN
darśam | nu | viśva-darśatam | darśam | ratham | adhi | kṣami | etāḥ | juṣata | me | giraḥ

देवता — वरुणः; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे मनुष्यो ! तुम (अधिक्षमि) जिन व्यवहारों में उत्तम और निकृष्ट बातों का सहना होताहै उनमें ठहर कर (विश्वदर्शतम्) जो कि विद्वानों की ज्ञानदृष्टि से देखने के योग्य परमेश्वर है उसको (दर्शम्) बारम्बार देखने (रथम) विमान आदि यानों को (नु) भी (दर्शम्) पुनः-पुनः देख के सिद्ध करने के लिये (मे) मेरी (गिरः) वाणियों को (जुषत)सदा सेवन करो॥18॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जिससे क्षमा आदि गुणों से युक्त मनुष्यों को यह जानना योग्य है कि प्रश्न और उत्तर केव्यवहार के किये बिना परमेश्वर को न जानने और शिल्पविद्या सिद्ध विमानादि रथों कोकभी बनाने की शक्य नहीं और जो उनमें गुण हैं वे भी इससे इनके विज्ञान होने केलिये सदैव प्रयत्न करना चाहिये॥18॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
18, सर्व-दर्शनीय वरुण को मैंने देखा है। भूमि पर, कई बार, उनका रथ मैने देखा है। उन्होंने मेरी स्तुति ग्रहण की है।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
Now saw I him whom all may see, I saw his car above the earth: He hath accepted these my songs.

Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Now saw I him whom all may see, I saw his car above the earth: He has accepted these my songs. [18]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
I have seen him whose appearance is grateful to all; I have beheld his chariot upon earth: he has accepted these my praises.

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