ऋग्वेद 1.25.10
नि षसाद धृतव्रतो वरुणः पस्त्यास्वा। साम्राज्याय सुक्रतुः॥10॥
पदपाठ — देवनागरी
नि। स॒सा॒द॒। धृ॒तऽव्र॑तः। वरु॑णः। प॒स्त्या॑सु। आ। साम्ऽरा॑ज्याय। सु॒ऽक्रतुः॑॥ 1.25.10
PADAPAATH — ROMAN
ni | sasāda | dhṛta-vrataḥ | varuṇaḥ | pastyāsu | ā | sām-rājyāya |
su-kratuḥ
देवता — वरुणः; छन्द — प्रतिष्ठागायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे जो (धृतव्रतः) सत्य नियम पालने (सुक्रतुः) अच्छे-अच्छे कर्म वाउत्तम बुद्धि युक्त (वरुणः) अतिश्रेष्ठ सभासेना का स्वामी (पस्त्यासु) अत्युत्तमघर आदि पदार्थों से युक्त प्रजाओं में (साम्राज्याय) चक्रवर्त्तिराज्य को करनेकी योग्यता से युक्त मनुष्य (आनिषसाद) अच्छे प्रकार स्थित होता है वैसेही हम लोगों को भी होना चाहिये॥10॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे परमेश्वर सब प्राणियों का उत्तमराजा है वैसे जो ईश्वर की आज्ञा में वर्त्तमान धार्मिक शरीर और बुद्धि बलयुक्त मनुष्य हैं वे ही उत्तम राज्य करने योग्य होते हैं॥10॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. धृत-व्रत और शोभनकर्मा वरुण दैवी सन्तानों के बीच साम्राज्य संसिद्धि के लिए आकर बैठे थे।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. Varuna, true to holy law, sits down among his people; he, Most wise,
sits there to govern. all.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Varuna, true to holy law, sits down among his people; he, Most wise, sits
there to govern. all. [10]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
10. He, Varuna, the accepter of holy rites, the doer of good deeds, has sat down amongst the (divine) progeny, to exercise supreme dominion (over them).
Anisasada pastyasu; the commentator explains the latter, daivisu prajasu, divine progeny; Rose translates it, inter homines; M. Langlois, au sein de non demeures; Dr. Roer, among his subjects. The sovereignty of Varuna, samrajyam, is disanctly specified.