ऋग्वेद 1.23.24

सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा। विद्युर्मे अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः॥24॥

पदपाठ — देवनागरी
सम्। मा॒। अ॒ग्ने॒। वर्च॑सा। सृ॒ज॒। सम्। प्र॒ऽजया॑। सम्। आयु॑षा। वि॒द्युः। मे॒। अ॒स्य॒। दे॒वाः। इन्द्रः॑। वि॒द्या॒त्। स॒ह। ऋषि॑ऽभिः॥ 1.23.24

PADAPAATH — ROMAN
sam | mā | agne | varcasā | sṛja | sam | pra-jayā | sam | āyuṣā | vidyuḥ | me | asya | devāḥ | indraḥ | vidyāt | saha | ṛṣi-bhiḥ

देवता —        अग्निः ;       छन्द        अनुष्टुप् ;      
स्वर        गान्धारः ;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को योग्य है कि जो (ॠषिभिः) वेदार्थ जाननेवालों के (सह) साथ (देवाः) विद्वान् लोग और (इन्द्रः) परमात्मा (अग्ने) भौतिक अग्नि (वर्चसा) दीप्ति (प्रजया) सन्तान आदि पदार्थ और (आयुषा) जीवन से (मा) मुझे (संसृज) संयुक्त करता है उस और (मे) मेरे (अस्य) इस जन्म के कारण को जानते और (विद्यात्) जानता है इससे उनका संग और उसकी उपासना नित्य करें॥24॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जब जीव पिछले शरीर को छोड़कर अगले शरीर को प्राप्त होता है तब उसके साथ जो स्वाभाविक मानस अग्नि जाता है वही फिर शरीर आदि पदार्थों को प्रकाशित करता है जो जीवों के पाप पुण्य और जन्म का कारण है उसको वे ही परमेश्वर के सिवाय जानते हैं किन्तु परमेश्वर तोः निश्चय के साथ यथायोग्य जीवों के पाप वा पुण्य को जानकर, उनके कर्म के अनुसार शरीर देकर, सुख-दुःख का भोग कराता ही है॥24॥
पूर्व सूक्त से कहे हुए अश्वि आदि पदार्थों के अनुषंगी जो वायु आदि पदार्थ हैं, उनके वर्णन से पिछले बाईसवें सूक्त के अर्थ के साथ इस तेईसवें सूक्त के अर्थ की संगति जाननी चाहिये॥
1. मण्डल 2 अध्याय 12 बारहवां वर्ग 5. पांचवां अनुवाक और यह तेईसवां सूक्त समाप्त हुआ॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
24. हे अग्नि! मुझे तेज, सन्तान और दीर्घायु दो, जिससे देवता लोग, इन्द्र और ऋषिगण मेरे अनुष्ठान को जान सकें।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
24. Fill me with splendour, Agni; give offspring and length of days; the Gods Shall know me even as I am, and Indra with the Rsis, know. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Fill me with splendour, Agni; give offspring and length of days; the gods Shall know me even as I am, and Indra with the Rishis, know.

H H Wilson (On the basis of Sayana)
24. Agni, confer upon me vigour, progeny and life, so that the gods may know the (sacrifice) of this my (employer), and Indra with the Rsis, may know it.

You may also like...