ऋग्वेद 1.23.16
अम्बयो यन्त्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्। पृञ्चतीर्मधुना पयः॥16॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒म्बयः॑। य॒न्ति॒। अध्व॑ऽभिः। जा॒मयः॑। अ॒ध्व॒रि॒ऽय॒ताम्। पृ॒ञ्च॒तीः। मधु॑ना। पयः॑॥ 1.23.16
PADAPAATH — ROMAN
ambayaḥ | yanti | adhva-bhiḥ | jāmayaḥ | adhvari-yatām | pṛñcatīḥ | madhunā
| payaḥ
देवता — आपः ; छन्द — निचृद्गायत्री ;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे भाइयों को (जामयः) भाई लोग अनुकूल आचरण सुख सम्पादन करते हैं वैसे ये (अम्बयः) रक्षा के करनेवाले जल (अध्वरीयताम्) जो कि हम लोग अपने आपको यज्ञ करने की इच्छा करते हैं उनको (मधुना) मधुरगुण के साथ (पयः) सुखकारक रस को (अध्वभिः) मार्गों से (पृञ्चतीः) पहुँचाने वाले (यन्ति) प्राप्त होते हैं॥16॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में लुप्तोपमालंकार है। जैसे बन्धु जन अपने भाई को अच्छे प्रकार पुष्ट करके सुख करते हैं, वैसे ये जल ऊपर नीचे जाते आते हुए मित्र के समान प्राणियों के सुखों का सम्पादन करते हैं और इनके बिना किसी प्राणी या अप्राणी की उन्नति नहीं हो सकती। इससे ये रस की उत्पत्ति के द्वारा सब प्राणियों को माता-पिता के तुल्य पालन करते हैं॥16॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
16. हम यज्ञेच्छुओं को मातृ-स्थानीय जल यज्ञ-मार्ग से जा रहा है। वह जल हमारा हितैषी बन्धु हैं। वह दूध को मधुर बनाता है।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
16. Along their paths the Mothers go, Sisters of priestly ministrants, Mingling
their sweetness with the milk.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Along their paths the Mothers go, Sisters of priestly ministrants, Mingling their sweetness with the milk. [16]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
16. Mothers to us, who are desirous of sacrificing, the kindred (waters) flow by the paths (of sacrifice) qualifying the milk (of kine) with sweetness. Ambayah, which may mean either, mothers. or as in the Kausitaki Brahmana- Apo va ambayah.