शान्ति-स्तवन

महादेवी वर्मा

शान्त गगन हो, शान्त धरा हो !

फैला दिशि-दिशि
अन्तरिक्ष हो शान्त हमारा,
शान्त हमारे हित हो
सागर की जलधारा।
औषधियों में क्षेम हमारे हित बिखरा हो !
शान्त गगन हो, शान्त धरा हो !

शममय हो भूकम्प
शान्त उल्का-निपतन हो,
शम, विदीर्ण धरती
का उर भी भीति शमन हो,
क्षेमकरी ही रहे धेनु लोहितक्षीरा हो।
शान्त गगन हो, शान्त धरा हो !

उल्का – अभिहृत ग्रह
शम हों अभियान दु:खकर,
शम कृत्या छल कुहक
हिंस्र आचरण क्षेमकर,
संहारक विध्वंस हमें शम शान्ति भरा हो !
शान्त गगन हो शान्त धरा हो !

विवस्वान सम, मित्र
वरुण अंतक भी शममय,
पृथिवी के नभ के सारे
उत्पात शान्तिमय,

नभचर नक्षत्रों की गति में शम उतरा हो !
शान्त गगन हो शान्त धरा हो !

इन्द्रिय के गण पांच
षष्ठ मन से संयुत हो,
तेज-दीप्त जो रहते हैं
उर में संस्थित हो,

क्रूर कर्म-क्षम वही इन्द्रियाँ क्षेमकरा हों !
शान्त गगन हो शान्त धरा हो !

दिव्य ज्ञान से दिव्य
उच्चता पाता जो मन,
क्रूर कर्म में भी जिससे
योजित होता जन,

वही हमारा सुमन शान्त शम में निखरा हो !
शान्त गगन हो शान्त धरा हो !

परिवर्तन के पूर्व रूप
हों हमें शांतिमय,
शांत हमें हों कृत
अकृत सब कर्मों के चय,

शांत भूत भवितव्य सृष्टि कल्याणधरा हो !
शान्त गगन हो शान्त धरा हो !

परम श्रेष्ठ यह दिव्य
ब्रह्म – शंसित कल्याणी,
कठिन कर्म का कारण
भी बनती जो वाणी,

वाग्देवता वही हमारी ऋतम्भरा हो !
शान्त गगन हो शान्त धरा हो !

(अथर्ववेद)