ऋग्वेद 1.26.1
वसिष्वा हि मियेध्य वस्त्राण्यूर्जां पते। सेमं नो अध्वरं यज॥1॥
पदपाठ — देवनागरी
वसि॑ष्व। हि। मि॒ये॒ध्य॒। वस्त्रा॑णि। ऊ॒र्जा॒म्। प॒ते॒। सः। इ॒मम्। नः॒। अ॒ध्व॒रम्। य॒ज॒॥ 1.26.1
PADAPAATH — ROMAN
vasiṣva | hi | miyedhya | vastrāṇi | ūrjām | pate | saḥ | imam | naḥ |
adhvaram | yaja
देवता — अग्निः ; छन्द — आर्च्युष्णिक् ;
स्वर — ऋषभः ; ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (ऊर्जाम्) बल पराक्रम और अन्न आदि पदार्थों का (पते) पालन करने और करानेवाले तथा (मिथ्येय) अग्नि द्वारा पदार्थों को फैलानेवाले विद्वान् ! तू(वस्त्राणि) वस्त्रों को (वसिष्व) धारणकर (सः) (हि) ही (नः) हम लोगों के (इमम्) इस प्रत्यक्ष (अध्वरम्) तीन प्रकार के यज्ञ को (यज) सिद्ध कर॥1॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। यज्ञ करनेवाला विद्वान् हस्तक्रियाओं से बहुत पदार्थों को सिद्ध करनेवाले विद्वानों का स्वीकार और उन का सत्कार कर अनेक कार्य्यों को सिद्धकर सुख को प्राप्त करे वा करावे। न कोई भी मनुष्य उत्तम विद्वान पुरुषों के प्रसंग किये बिना कुछ भी व्यवहार वा परमार्थरूपी कार्य्य को सिद्ध करने को समर्थ हो नहीं हो सकता है॥1॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. यज्ञपात्र और अन्नभाजन अग्निदेव! अपना तेज ग्रहण करो। और हमारे इस यज्ञ का सम्पादन करो।
R T H Griffith
1. O WORTHY of oblation, Lord of prospering powers, assume thy robes, And offer this our sacrifice.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
WORTHY of oblation, Lord of prospering powers, assume your robes, And offer this our sacrifice. [1]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
1. Lord of sustenance, assume your vestments (of light) and offer this our sacrifice.
The text has only vastrani, clothes; meaning, the scholiast says, achhadakani tejamsi, investing radiance.