ऋग्वेद 1.25.5
कदा क्षत्रश्रियं नरमा वरुणं करामहे। मृळीकायोरुचक्षसम्॥5॥
पदपाठ — देवनागरी
क॒दा। क्ष॒त्र॒ऽश्रिय॑म्। नर॑म्। आ। वरु॑णम्। क॒रा॒म॒हे॒। मृ॒ळी॒काय॑। उ॒रु॒ऽचक्ष॑सम्॥ 1.25.5
PADAPAATH — ROMAN
kadā | kṣatra-śriyam | naram | ā | varuṇam | karāmahe | mṛḷīkāya | uru-cakṣasam
देवता — वरुणः; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हम लोग (कदा) कब (मृळीकाय) अत्यन्त सुख के लिये (उरुचक्षसम्) जिसको वेदअनेक प्रकार से वर्णन करते हैं और (नरम्) सबको सन्मार्ग पर चलानेवाले उस(वरुणम्) परमेश्वर को सेवन करके (क्षत्रश्रियम्) चक्रवर्त्ति राज्य की लक्ष्मी को (करामहे)अच्छे प्रकार सिद्ध करें॥5॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती मनुष्यों को परमेश्वर की आज्ञा का यथावत् पालन करके सब सुख और चक्रवर्त्तिराज्यन्याय के
साथ सदा सेवन करने चाहियें॥5॥
यह सोलहवां वर्गपूरा हुआ॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. वरुणदेव बलवान् नेता और असंख्य लोगों के द्रष्टा हैं। सुख के लिए हम कब उन्हें यज्ञ में ले आयेंगे?
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
5. When shall we bring, to be appeased, the Hero, Lord of warrior might,
Him, the far-seeing Varuna?
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
When shall we bring, to be appeased, the hero, Lord of warrior might, Him, the far-seeing Varuna? [5]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
5. When for our happiness, shall we bring hither Varuna eminent in strength, the guide (of men), the regarder of many?
Uru-caksasam, is explained, bahunan drastaram, the beholder of many.