ऋग्वेद 1.25.2
मा नो वधाय हत्नवे जिहीळानस्य रीरधः। मा हृणानस्य मन्यवे॥2॥
पदपाठ — देवनागरी
मा। नः॑। व॒धाय॑। ह॒त्नवे॑। जि॒ही॒ळा॒नस्य॑। री॒र॒धः॒। मा। हृ॒णा॒नस्य॑। म॒न्यवे॑॥ 1.25.2
PADAPAATH — ROMAN
mā | naḥ | vadhāya | hatnave | jihīḷānasya | rīradhaḥ | mā | hṛṇānasyamanyave
देवता — वरुणः; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे वरुण जगदीश्वर! आप जो (जिहीळानस्य) अज्ञान से हमारा अनादर करे उसके (हत्नवे)मारने के लिये (नः) हम लोगों को कभी (मा रीरधः) प्रेरित और इसी प्रकार (हृणानस्य)जो कि हमारे सामने लज्जित हो रहा है उसपर (मन्यवे) क्रोध करने को हम लोगों को(मा रीरधः) कभी मत प्रवृत्त कीजिये॥2॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती ईश्वर उपदेश करता है कि हे मनुष्यो ! जो अल्पबुद्धि अज्ञान जन अपनी अज्ञानता से तुम्हारा अपराध करें तुम उसको दण्ड ही देने को मत प्रवृत्त और वैसे ही जो अपराधकरके लज्जित हो अर्थात् तुमसे क्षमा करवावे तो उसपर क्रोध मत छोड़ो किन्तु उसकाअपराध सहो और उसको यथावत् दण्ड भी दो॥2॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. वरुण! अनादरकर और घातक बनकर तुम हमारा वध नहीं करना। क्रुद्ध होकर हमारे ऊपर क्रोध नहीं करना।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2 give us not as a prey to death, to be destroyed by thee in wrath, To thy
fierce anger when displeased.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
give us not as a prey to death, to be destroyed by you in wrath, To your
fierce anger when displeased. [2]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
2. Make us not the objects of death, through your fatal indignation, through the wrath of you so dis-pleasured.