ऋग्वेद 1.25.16

परा मे यन्ति धीतयो गावो न गव्यूतीरनु। इच्छन्तीरुरुचक्षसम्॥16॥

पदपाठ — देवनागरी
पराः॑। मे॒। य॒न्ति॒। धी॒तयः। गावः॑। न। गव्यू॑तीः। अनु॑। इ॒च्छन्तीः॑। उ॒रु॒ऽचक्ष॑सम्॥ 1.25.16

PADAPAATH — ROMAN
parāḥ | me | yanti | dhītayaḥ | gāvaḥ | na | gavyūtīḥ | anu | icchantīḥ | uru-cakṣasam

देवता —        वरुणः;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे (गव्यूतीः) अपने स्थानों को (इच्छन्तीः) जाने की इच्छा करती हुई (गावः) गो आदिपशु जाति के (न) समान (मे) मेरी (धीतयः) कर्म की वृत्तियां (उरुचक्षसम्) बहुतविज्ञानवाले मुझको (परायन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होती है वैसे सब कर्त्ताओं को अपने-अपनेकिये हुये कर्म प्राप्त होते ही हैं ऐसा जानना योग्य है॥16॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। मनुष्यों को ऐसा निश्चय करना चाहिये कि जैसे गौ आदि पशुअपने-अपने वेग के अनुसार दौड़ते हुए चाहे हुये स्थान को पहुंचकर थक जाते हैं वैसे हीमनुष्य अपनी-अपनी बुद्धि बल के अनुसार परमेश्वर वायु और सूर्य आदि पदार्थों के गुणोंको जानकर थक जाते हैं। किसी मनुष्य की बुद्धि वा शरीर का वेग ऐसा नहीं हो सकता किजिस का अन्त न हो सके जैसे पक्षी अपने-अपने बल के अनुसार आकाश को जाते हुएआकाश का पार कोई भी नहीं पाता इसी प्रकार कोई मनुष्य विद्या विषय के अन्त को प्राप्तहोने को समर्थ नहीं हो सकता है॥16॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
16. बहुतों ने उस वरुण को देखा है। जिस प्रकार गौएँ गोशाला की ओर जाती हैं, उसी प्रकार निवृत्तिरहित होकर हमारी चिन्ता वरुण की ओर जा रही है।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
16. Yearning for the wide-seeing One, my thoughts move onward unto him, As kine unto their pastures move. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Yearning for the wide-seeing One, my thoughts move onward to him, As kine to their pastures move. [16]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
16. My thoughts ever turn back to him who is beheld of many, as the kine return to the pastures.

You may also like...