ऋग्वेद 1.25.13
बिभ्रद्द्रापिं हिरण्ययं वरुणो वस्त निर्णिजम्। परि स्पशो नि षेदिरे॥13॥
पदपाठ — देवनागरी
बिभ्र॑त्। द्रा॒पिम्। हि॒र॒ण्यय॑म्। वरु॑णः। व॒स्त॒। निः॒ऽनिज॑म्। परि॑। स्पशः॑। नि। से॒दि॒रे॒॥ 1.25.13
PADAPAATH — ROMAN
bibhrat | drāpim | hiraṇyayam | varuṇaḥ | vasta | niḥ-nijam | pari | spaśaḥ
| ni | sedire
देवता — वरुणः; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे इस वायु वा सूर्य्य के तेज में (स्पशः) स्पर्शवान् अर्थात् स्थूल सूक्ष्म सब पदार्थ(निषेदिरे) स्थिर होते हैं और वे दोनों (वरुणः) वायु और सूर्य्य (निर्णिजम्) शुद्ध (हिरण्ययम्)अग्न्यादिरूप पदार्थों को (बिभ्रत्) धारण करते हुए (द्रायिम्) बल तेज और निद्रा को(परिवस्त) सब प्रकार से प्राप्त कर जीवों के ज्ञान को ढ़ाप देते हैं वैसे (निर्णिजम्) शुद्ध(हिरण्ययम्) ज्योतिर्मय प्रकाशयुक्त को (बिभ्रत्) धारण करता हुआ (द्रायिम्) निद्रादि के हेतुरात्रि को (परिवस्त) निवारण कर अपने तेज से सबको ढ़ाप लेता है॥13॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। जैसे वायु बल का करनेहारा होने से सब अग्नि आदि स्थूल औरसूक्ष्म पदार्थों को धरके आकाश में गमन और आगमन करता हुआ चलता और जैसे सूर्य्यलोक भी स्वयं प्रकाशरूप होने से रात्रि को
निवारण कर अपने प्रकाश से सबको प्रकाशता हैवैसे विद्वान् लोग भी विद्या और उत्तम शिक्षा के बल से सब मनुष्यों को धारण कर धर्म मेंचल सब अन्य मनुष्यों को चलाया करें॥13॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
13. वरुण सोने का वस्त्र धारण कर अपना पुष्ट शरीर ढकते हैं। जिससे चारों और हिरण्यस्पर्शी किरणें फैलती हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
13. Varuna, wearing golden mail, hath clad him in a shining robe. His spies
are seated found about.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Varuna, wearing golden mail, has clad him in a shining robe. His spies are
seated found about. [13]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
13. Varuna clothes his well-nourished (person), wearing golden armour, whence the (reflected) rays are spread around.
Bibhrad drapim hiranyayam, that is, suvarnamayam kavacam, armour or mail made of gold. This looks as if the person of Varuna were represented by an image; the same may be said.of the phraseology of 18.